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________________ २१ দুই ( १२३ ) वली विधाता विनवुं, जली निपाई नारि; नर रंजण ए गोरमी, रमारमती संसारि. महिला विष मंदिर किशुं गोठ किसी संसार; तेथानक सोदामणां, ज्यां ज्यां ऊजी नार. रीसावी नवयौवना, नर नहीं मेले पाउ; कहि नरपति सुन बापमा, हूर्ज मयण पसाउ. लाड घहेली लाडकी, गुणको जाणे पार; सार संसारे सुंदरी, कहि नरपति सुविचार. एक सोनुं ने सुंदरी, पुण्यत अधिकार: परमेश्वर पूज्या विना, किम लहियें संसार. एक सोनुं ने सुंदरी, वेहू नरनी / पंख; एक पखे पंखी विहाण, पुण्यवंत बिहु पंख. प्रिय सूती सुंदरी, आलींगन अधिकार; पातक बूद्धं दिवसनुं, रयण सेज मकार. नारी निर्मल वेलडी, नर अरुर परसंत; कवि नरपति इम उच्चरे, संयोगे सोइंत. संयोगे जग ऊपजे, वियोगे जग जाय; ए संयोग वियोगनो, विरला जेद लहाय. इक श्रालिंगन चुंबनद, अधर वलग्गा दंत; अंगढ़ जंगह मिली रह्या, नर कामिनि सेवंत. २८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org १५ २० २३ २४ २५ २६ २७
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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