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________________ हेबनी सेवा, ए संबल लीजें ॥ चा०॥४॥ इति ॥ ३ जाग जाग रेण गश्, नोर नयो प्यारे ॥ पंचकुं प्रपंच कर, वश कर यारे ॥ जाग जाग रेण गश्नोर जयो प्यारे॥१॥ ए आंकणी ॥ तृष्णामें मीन मरे, नोग में मत्तंगा, श्रवणमें कुरंग मरे, नयनमें पतंगा॥ जा० ॥२॥ वासनामें चमर मरे, नासा रस लेतां॥ एक एक इंजीसंगे, मरे जीव केता ॥ जा० ॥३॥ पंचके पड्यो तुं फंद, क्युं करि वश श्रावे ॥ मार तुं मन श्वानूत, ज्युं निरंजन पावे ॥ जा ॥४॥ ४ तुंह नाथ हमारो रे जिनपति, तुंहि नाथ ह मारो॥ योग खेमंकर नविक सकलके, सेवक हश्या मांहे धारो रे ॥ जितुं० ॥१॥ए आंकणी ॥जो गुन पाए नही सो मिलावत, पाए गुनकू सुधारो॥अननि राम कलिमल करो दूरे, अब मोहि पार उतारो रे॥ जि० ॥ तुंग ॥२॥ त्रिजुवन नाथ सार करो मोरी, करुणा नजर निहालो॥ पास चिंतामणि जानुचंदकी, एह विनति अवधारो रे ॥ जि० ॥ तुं ॥३॥ __५ मेरे ए प्रनु चाएं, नित जति दरिसण पाऊं। चरणकमल सेवा करूं, चरणे चित्त लाऊं ॥ मेरे ॥ ॥१॥ मन पंकजके महेलमें,प्रजुपास बेगऊं । निप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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