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(ए) ॥१॥ जान्या सुर नर सुख रासी, हुआ हे उदासी ह० ॥ जल गइ अवर जंजाल, जगतकी फांसी॥तुम जगत् पति अविनासी, मुगतके वासी ॥ मुग ॥ शि व मंदिरमें सुख सेज, विबाई खासी ॥ तुम करी स फल जिंदगानी, मेरे मन मानी ॥ मेरे ॥ नव० ॥ ॥२॥ बडे ज्योतवंत जिनराज, जगत्में बाजे ॥ ज॥ तेरो दरिसन हे सुखदायि, सुधारे काजे॥तेरी धुनि गगनमें गाजे, वे सुरपति लाजे ॥ वे सु ॥ गलगया गरव पाखंग, कामना लांजे ॥ नाटक नाचे इंसाणी, अधिक धुनि श्रानी ॥ अधिक० ॥ जव० ॥३॥ तेरी महिमा कहिय न जावे, पार नही पावे ॥पार ॥ गंधर्व सुरपति सब देव, तेरे गुन गावे ॥ तेरे चरनुं से लपटावे, सरपति लय लावे ॥ सरस०॥ नर नार हियाके मांहे, नक्ति तेरी चावे॥तृष्णाही सब विरला पी, मुगतिकं वानी ॥ मग ॥ न० ॥४॥ मरुदेवी कूखका जाया, अमर पद पाया ॥ अमर ॥ उपन्न कुमारी नारि, मिली जस गाया ॥ पुरगतिकापुःख विरलाया, सफल करी काया ॥ सफल ॥ जिनदास निरंजन देख, सरन तेरे आया ॥ समकितकी सहेज पीगनी, मिली मोहे टानी ॥ मिली० ॥ न० ॥५॥
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