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________________ ( १०२ ) ॥ वर० ॥ वली खाजांने मगदल | म करो० ॥ ५ ॥ लाखसाइ रेशमी ॥ वर० ॥ मांहे मोतीचूरनो स्वाद ॥ म करो० ॥ क्रूर रांध्यो कमोदनो ॥ वर० ॥ मां मसूरी दाल ॥ सबल दीवाजाजी ॥ ६ ॥ खा रेक खजूर ने टोपरां ॥ वर० ॥ वली चारोली ने झाख ॥ सबल० ॥ लविंग सोपारी एलची ॥ वर० ॥ वली पाननां बीडां चार ॥ सबल० ॥ ७ ॥ सजन कुटुंब सं तोषीयां ॥ वर० ॥ बहु कीधी पेरामणी सार ॥ सब ल० ॥ जान लेई यादव चढ्या ॥ वर० ॥ वली पाख रीया केकाण || सबल० ॥ ८ ॥ हाथी रथ शणगारी या ॥ वर० ॥ वली केशरीया असवार ॥ सबल० ॥ इंद्र जोवाने श्राविया ॥ वर० ॥ इंद्राणी गावे गीत ॥ सबल० ॥ ए ॥ तोरण याव्या नेमजी ॥ वर॥ ते ने निरखे राजुल नार ॥ सबल० ॥ रूपचंद रंगे म या ॥ato | ए जोवा सरखी जान ॥ सब० ॥ १० ॥ ॥ ढाल बही ॥ सखी कहे वर शामलो ॥ ए दीसे जी ॥ ते निरखे राजुल नार ॥ हइमुं हीसे जी ॥ काला गयवर हाथीया ॥ ए दी० ॥ वली कालो मेघ मलार ॥ ५० ॥ १ ॥ काली अंजन खडी ॥ ए दीसे जी ॥ तेनुं मूल केणे नवि थाय || हइडुं० ॥ काली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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