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(१०३) कस्तूरी कही ॥ ए दीसे जी ॥ काला कृष्णागरु केश ॥ हश्डंग ॥॥ रूपचंद रंगे मव्या ॥ ए दीसे जी ॥ सखि शामलीयो जरतार ॥ हश्रुं ॥३॥
॥ ढाल सातमी॥ पशुश्र पोकार सुणी करी ॥शुध लीधी जी॥ विचारे श्रीवीतराग॥ तेणे दया कीधीजी ॥ जो परणुं तो पशु मरे ॥ शु०॥ मूकी अनुकंपा जाल ॥ तेणेगा॥ श्म जाणी रथ वालीयो ॥ शु० ॥ फेरव तां दीनदयाल ॥ तेणे ॥ पशुबंधन सर्व तोडीयां ॥ शु॥ ते सर्व गयां वनमाहे ॥ तेणें ॥२ ॥रूपचं द रंगे मन्या ॥शु॥ प्रजु दीधुं वरसीदान ॥तेणे॥३॥
॥ ढाल आठमी ॥ राजिमती धरणी ढव्यां ॥ मोरा वहालाजी॥ अवगुण विण दीनानाथ ॥ हाथ न काट्योजी ॥ आंगण आवी पागा वदया ॥ मोरा॥ दत्रियकुलमां लगावी लाज ॥ हाथ ॥१॥ तमे पशु तणी करुणा करी॥ मोराण ॥ तमने माणसनी नहिं म्हेर ॥ हाथ० ॥ आठ नव थयां एकगं ॥ मोरा॥ कीधा तुमशुंरंग रोल ॥ हाथ ॥२॥ नवमे नवे तमे नेमजी ॥ मोरा॥ मुऊने कां मेली जाउँ ॥ हाथ॥ मारी आशा अंबर जेवडी ॥ मोरा०॥ तमे केम उ पाडी कंत ॥ हाथ ॥३॥ में कूमां कलंक चढावि
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