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________________ (१०४) यां ॥ मोरा० ॥ नाख्यां अणदीगं बाल ॥ हाथ०॥ में पंखी घाख्यां पांजरे ॥मोरा ॥ वली जलमां ना खी जाल ॥ हाथ ॥॥ में साधुने संतापीया ॥मो रा॥ में माय वीडोड्यां बाल॥ हाथ ॥ में कीमी द र उघामियां ॥ मोराण ॥ वलि मरमना बोल्या बोल ॥ हाथ ॥५॥श्रणगल पाणी में जयां॥मोरा॥में गुरु ने दीधी गाल हाथ में कठिण करम कीधां हशे ॥ मोरा०॥ ते आवी लागां पाप ॥ हाथ ॥६॥ श्म क रतां राजुल आवियां॥ मोरा ॥ श्रीनेमीश्वरनी पास ॥ हाथ ॥ रूपचंद रंगे मन्या ॥ मोराण ॥राजुल लीयो संयम जार ॥ हाथ ॥७॥ ॥ ढाल नवमी ॥ श्रीनेम राजीमती एकगं ॥सा हेलडीयां ॥ ज चढियां श्रीगिरनार ॥ जिनगुण वे लडियां ॥ पूंठेथी राजुल रिजावियां ॥ सा॥ संजम वंती राजकुमार ॥ जिन ॥१॥ आझा लेश् राजुल एकली ॥ सा॥ गिरनार उपर गुफामांहे ॥ जिनः॥ वाटें जातां वर्षा थयो ॥ सा ॥ जीजाणां राजुलनां चीर ॥जि॥२॥ गुफामांहे जश्शूकव्यां ॥ सा॥ लागु ते काचुं नीर ॥ जिन ॥ अति सुकुमाल सोहामणुं ॥ सा॥राणी राजिमतीनुं शरीर ॥ जिनम्॥ रहनेमि त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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