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॥ अथ श्री चक्रेश्वरी मातानी आरती ॥ ॥ जय जय यारति देवी तुमारी, नित्य प्रणमुं तुम चरणारी ॥ जय० ॥ १ ॥ श्री सिद्धाचल गिरि रखवाली, नाम चक्केसरी जग सौख्याली ॥ जय० ॥ ॥ २ ॥ विधिपगछनी शासन देवी, सकल श्री संघने सुख करेवी ॥ जय० ॥ ३ ॥ निलवट टीलडी रत्न बिराजे, काने कुंमल दोय रवि शशि बाजे ॥ जय० ॥ ॥४॥ बांदे बाजुबंध बहेरखा सोहे, नीलवर्ण सहु जन मन मोहे ॥ जय० ॥ ५ ॥ सोवन मय नित्य चूनडी खलके, पाये घूंघरमा घम घम घमके ॥ जय० ॥ ॥ ६ ॥ वाहन गरुम चड्यां बहु प्रेमे, तुऊ गुण पार न पामुं केमे ॥ जय० ॥ ७ ॥ चूनमीजमामां देह
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ति दीपे, नवसरा हारे जग सहु कीपे ॥ जय० ॥ ८ ॥ नित नित मानी आरति उतारे, रोग सोग जय दूर निवारे ॥ जय० ॥ ए ॥ तस घर पुत्र पुत्रा दिक बाजे, मनोवांछित सुख संपत् राजे ॥ जय० ॥ ॥ १० ॥ देवचंद्रमुनि आरति गावे, जयो जयो मंग ल नित्य वधावे ॥ जय० ॥ ११ ॥
॥ अथ श्रीनेमनाथजीनो नवरसो प्रारंभः ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ गरबानी देशी मां ॥ समुद्र विज
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