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________________ (११०) नारी थकी मरतो रहे, कायर किस्युं वखाण ॥ कूम कपट बहु केलवी, जिम तिम राखे प्राण ॥३॥ को विरलो तुक श्रादरे, बंमी सहु संसार ॥ श्राप एक तुं नांजतो, बीजा नांजे चार ॥४॥ करम निका चित्त त्रोमवा, नांगँ जव जय नीम ॥अरिहंत मुक ने आदरे, वरस मासी सीम ॥ ५ ॥ रुचक नंदी सर उपरे, मुफ लब्धे मुनि जाय ॥ चैत्य जूहारे शाश्वतां, आनंद अंग न माय ॥ ६ ॥ महोटा जोय ण लाखना, लघु कुंथु आकार ॥ हय गय रथ पायक तणां, रूप करे अणगार ॥७॥ मुफ कर फरसे उ पशमे, कुष्टादिकना रोग ॥ लब्धि अहावीश ऊपजे, उत्तम तप संजोग ॥ ७॥ जे में ताख्या ते कडं, सु णजो मन उदास ॥ चमत्कार चित्त पामशो, देशो मुक शाबास ॥ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ नणदलनी देशी ॥ दृढप्रहार अति पापीयो, हत्या कीधी चार हो। सुंदर ॥ ते पण तिण नव उमस्यो, मूक्यो मुक्ति म कार हो ॥ सुंदर ॥ १॥ तप सरिखं जग को नही, तप करे कर्मनुं सूम हो ॥ सुंदर ॥ तप करवू अति दोहिलु, तपमां नही को कूड हो ॥ सुंदर ॥ तप०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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