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मूरख मत खोवे ॥ मूरख० ॥ ए सुमति सुरगको पंथ श्रमरगत होवे | छाव डुर्लज जिननक्तिकी, लही निज टानी ॥ लही ० ॥ कोइ० ॥ २ ॥ ब सुर नर गावे गीत, जब जग लागी ॥ जब० ॥ जिहां नाचत नृत्य अनेक, लसकुं त्यागी ॥ अव मोहत मन नरपतिका, गगनधुनि गरजे ॥ गग० ॥ ए जिन वर महिमा अनंत, ध्यान दिल धरजे ॥ एसी अधि क बबी जिनजीकी, मेरे मन मानी ॥ मेरे० ॥ को इ० ॥ ३ ॥ अब जिन चरणोसें रंग, अधिक दिल लागो ॥कि० ॥ में पस्यो जिन गुन छाजब, सुरं गी वाघो ॥ श्रा सफल घडी समकितकी, हाथ ब श्राइ ॥ हाथ० ॥ में गगन गमनकी पांख, श्रमूलक पाइ ॥ अब बोलत युं जिनदास सुनो जिनवानी ॥ सुनो० ॥ कोइ० ॥ ४ ॥
॥ ३ ॥
॥ शीखामणनी लावणी ॥
॥ एक जिनवरका निज नाम दियामे लेनां ॥ हिया० ॥ गु लगी लगन जिनवरसें, आप खुश रहेनां - सदा खुश रहेनां ॥ ए की ॥ अव निर खुं जिन दीदार, दरस कव पाउं ॥ दर० ॥ जगमें जिनवर निज नाम निरंजन ध्यानं ॥ अब रहे न
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