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________________ ( १६ ) रे, जरतें हिंयां जोय ॥ मारुं० ॥ २ ॥ एणें गिरी आव्या रेजिनवर गणधरा रे, सिद्धा साधु अनंत ॥ कठिण करम पण ए गिरि फरसतां रे, होवे कर्मनी शांत ॥ मारुं ॥ ३ ॥ जैन धर्मनो जाचो जाणजो रे, मानव तीरथ ए स्तंन ॥ सुर नर किंनर नृप विद्या धरा रे, करता नाटारंज ॥ मारुं० ॥ ४ ॥ धन धन दादाको रे धन वेला घमी रे, धरियें हृदय मजार ॥ ज्ञानविमल सूरी गुण एहना घणा रे, कहेतां न आवे रे पार || मारुं० ॥ ५ ॥ २० बेलनी जंलीनुं स्तवन ॥ जवि प्राणी रे सेवो, सिद्धचक्र ध्यान समो नहिं मेवो ॥ उ जवि० ॥ ए क ॥ जे सिद्धचक्रने रे याराधे, तेहनी कीर्ति जगमां वाधे ॥ जवि० ॥ १ ॥ पहेले पदे रे अरिहं त, बीजे सिद्ध बुध ध्यान महंत ॥ त्रीजे पढ़ें रे सूरी सर, चोथे उवकाय ने पांचमे मुनीसर ॥ नवि० ॥२॥ उठे दर्शन रे कीजें, सातमे ज्ञानथी शिव सुख लीजें ॥ श्रवमे चारित्र रे पावो, नवमे तपथी मुक्ति जावो ॥ जवि० ॥ ३ ॥ जैली बेलनी कीजें. नोक रवाली वीश गणीजें ॥ त्रणें टंकना रे देव वांदीजें, पलेवण पक्किमणां कीजें ॥ जं जवि० ॥ ४ ॥ गुरु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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