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________________ (१२५) नारी नेह न कीजियें, जैसा रंग पतंग; पेहेली कीपे पांजरू, किम करि कहियें चंग. ३॥ जणि नरपति नर बापडा, माह्या सुणजो शीख, तिरिया गूफ प्रकाशियो, वेगु तो लीये जीख. ५० कहे नरपति नर बापमा, ए नारीनी घात; एके पीछे कागशृं, देश वजामी वात. १ नला जलेरा ते गया, लू उपरि जुएण; नारी श्राशा लागीयो, शिर दी, विक्रमेण. ४२ जेम जलो जल माहिती, तिम नारी निरवाण; ऊ लागी लोही पिये, नारी पीये प्राण. ४३ वेद पुराणे आगला, जे मापणना मूल; नारि वचन जे सांजले, ते नर जाणुं धूल. ४ वाटें चाचर चोवटे, बलियाते जीवंत; तिरिश्रा बिहटे जे उदया, नेह निखंत नमंत. ४५ कहि नरपति सुण बापडा, नारि म राचो को; जा संगम नारी वसै, ता नर मुगत न हो. ४६ नारी साथें नीगम्या, एता अवगुण हो जा संगम नारी वसै, ता नर मुगति न होश. ४७ जिम गिरि धन गयणे वसे, मृत्यु कठणका देश । नारी गिरि धन नरहकी, जीवति ठणका देश. ४७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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