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________________ ( 9 ) जे ॥ तुं सुख दुःखका सिरदार, रंक नहीं राना ॥ रं क० ॥ तुम० ॥ २ ॥ तुं बिसर गया जुंग बीच, ना म जिनवरका ॥ नाम० ॥ पच रह्या कुटुंब के काज, किया फंद घरका || तें दया धरम बिन खोया, जन म सब नरका ॥ जनम० ॥ तें पल्ले बांध्यां पाप, क साई सरखा || अब लिया नही ए लाज, बखत पर करका ॥ बखत ॥ तेरी वीति बात सब जाय, जन म ज्युं खरका | अब सुखो सीख सूतरकी, सुलट रे शाना ॥ सुल० ॥ तुम० ॥ ३ ॥ तेरी चरण सेज पर पोढ्या, नंद दिन यया ॥ यनं० ॥ मेरी जगी भूख सब प्यास, सुधारस पाया || मेरे सिरपर तुम सिरदार, जिनेसर राया ॥ जिने० ॥ में चाउं चर नकी सेव, सफल कर काया ॥ ब द्यो दोलत द रसनकी, मेरे एहि माया ॥ मेरे० ॥ युं कारज करे जिनदास, अलप गुण गाया || अब बुरा कुगुरु उप देश, धरो मत काना ॥ धरो० ॥ तुम० ॥ ४ ॥ ७ ॥ ॥ उपदेश लावणी ॥ ॥ तजो काम मद मान लाल, जिनवर गुण नज लीजे ॥ कमाई सुकृतकी कीजें ॥ कमा० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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