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________________ ( ८६) ॥ चल० ॥ ३ ॥ अब कुमतिको ललचायो, रती नही रुगियो || रती० ॥ सुनकर सूत्रकी शीख, साच होय लगियो | चेतन कुमतिके सेज, दूरसुं नगियो | दूर ०॥ जिनराज वचनको ग्यान, हैयेमे जगीयो ॥ जिनदास कुमति तुं बात, खोटी मत खेडे ॥ खो० ॥ चल० ॥४॥ ॥ उपदेश लावणी ॥ ॥ तुम तजो जगत्का ख्याल, इसकका गानां ॥ इस० ॥ तेरि अल्प उमर खुट जाय नरक उठ जा ना || तेरे सिरपर बेठा काल, करे हे हांसा ॥ में वोलुं साची बात, जूठ नही मासा ॥जू० ॥ तूं सूता हे कुण निंद, किसी कर खासा | छाब सेव देव जि नराज, खलक में खासा ॥ खल० ॥ तेरा जोबन पतं गका रंग, जू सब थासा ॥ अव ही ये धरो मेरि सीख, समज रे दिवाना ॥ सम॥० ॥ १ ॥ अब बुरी जली सब बात, मून कर रीजें ॥ मून० ॥ ए मुख मीठा संसार, भेद नही दीजें ॥ कर वीतराग विसवास, हिये धर लीजें ॥ हिये० ॥ पण नीच नारका संग, मांहें मत जींजें ॥ सात विसनको संग, प्रीत मत कीजें ॥ प्रीत० तोहें डुरगति दे पहोचाय, तेरो तन बी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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