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स्या हे नजरुं ॥ रुषजदेव है साहेब सच्चा, देख तमासा फज में || सु० ॥ ७ ॥ मयाराम सुत जणे मूलचंद, बने सितांबर तुम देवा ॥ फोज विखर गइ घर घर घोडा, लता राखो तुमदेवा ॥ सु० ॥ ८ ॥ ॥ अथ चार मंगलनुं स्तवन ॥
॥ राग सामेरी ॥ कीजें मंगल चार, आज घरें नाथ पधारया ॥ कीजें० ॥ ए यांकणी ॥ पहेलुं मंग ल प्रभुजी कूं पूजुं, घसी केसर घनसार ॥ श्राज० ॥ १ ॥ बीजं मंगल अगर उखेवुं, कंठे वकुं फुल हार ॥ आज० ॥ २ ॥ त्रीजुं मंगल आरती उतारुं, घंट बजा वुं रणकार ॥ ज० ॥ ३ ॥ चोथुं मंगल प्रजुगुण गायुं, नाचुं यैथैकार ॥ ज० ॥ ४ ॥ रूपचंद कहे नाथ नीरंजन, चरण कमल जाउं वार ॥ ज० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ राग सामेरी ॥ चारो मंगल चार ॥ श्रज मारे चारो मंगल चार ॥ ए आंकणी ॥ दीगे दरस सरस जिनजीको, शोजा सुंदर सार ॥ ज० ॥ १ ॥ बिनु बिनु जन मन मोहन चरची, घसी केसर घन सार ॥ ज० ॥ २ ॥ धूप उखेवुं करूं यारती, मुखे बोलुं जयकार ॥ ज० ॥ ३ ॥ विविध जातके पुष्प
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