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य ॥ ० ॥ २ ॥ नारी जो परणावीयें ॥ हणतो बल बेरुं थाय ॥ ० ॥ इम विचारी कृष्णजी ॥ ६० ॥ निज अंतेजर समजाय ॥ ० ॥ ३ ॥ विवाद नेम मनाववा ॥ ह० ॥ स यार्ड सघली नार ॥ ० ॥ रूपचंद रंगें म व्या ॥ ६० ॥ ताहारं अतुली बल अरिहंत ॥ श्रं ॥ ४ ॥
॥ ढाल त्रीजी ॥ राधाजी ने रुक्मिणी ॥ मोरा गि रधारी ॥ सत्यनामा जांबुवती नार ॥ मुकुटपर हुंवारी ॥ चंद्रावती शणगारिये ॥ मोरा० ॥ गोपी मली ब त्रीश हजार ॥ मुकुट ॥ १ ॥ विवाह मानो नेमजी ॥ देवर मोरा जी ॥ मने करवाना बहु कोम ॥ ए गुण तोराजी ॥ नारी विनानुं श्रांगणं ॥ देवर० ॥ जेम लुएं धान ॥ ए गुण० ॥ २ ॥ नारी जो घरमा वसे ॥ देवर० ॥ तो पामे परोणो मान ॥ ए गुण० ॥ ना री विना नर हाली जिसा ॥ देवर० ॥ वली वांढा क देशे लोक ॥ ए गु० ॥३॥ बोकरवाद न कीजीयें ॥ देव० ॥ तमे म करो ताषा ताए ॥ ए गुण० ॥ रूपचंद रंगे मया ॥ देवर० ॥ हवे उत्तर आपे नेम ॥ ए० ॥४॥
॥ ढाल चोथी ॥ नेम कहे तमे सांजल | मोरी जाजी जी || किश्यो काम विकार ॥ में गत पार्म जी ॥ नारी मोहे जे पड्या | मोरी० ॥ ते रमव मिया
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