SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४६) नी॥त्यां बोल न बोलो एक ॥ ज्यां नहीं विनय वि वेक रे ॥ बेहेनी ॥ एवा माणस अनेक रे ॥ बे०॥ त्यां बोल म बोलो एक ॥ १॥ शिक्षा दीजें संतने रे, जेहनी उत्तम जात ॥ फाटे पणं फीटे नहीं रे, जेम पमी पटोले जात रे ॥ बे त्यां० ॥२॥ विघ टाव्यां विघटे नहीं रे, गालें घेइला थाय ॥ कसो टीयें कुंदन परे रे, कसतां नवी क्षण साय रे ॥ बे॥ त्यां० ॥ ३ ॥ मग मग दीसे मुंगरा रे, पग पग पा णी पूर ॥ हीरो ने अमृत बन्हे रे, शो ध्यान मलें सनूर रे ॥ बे० ॥ त्यां ॥४॥ श्रावल रूपें रूअमी रे, ममरो मरूळ सोय ॥ रूप रहित सहु श्रादरे रे, श्रावल न श्रादरे कोय रे ॥ बे० त्यांग ॥ ५ ॥ आप मतिलां श्रादमी रे, श्छा चारी अपार ॥ हास्यां दो स्यां हारमा रे, नावे ते निरधार रे ॥ बे॥ त्यां० ॥६॥ पड सुड़ी वाली वले रे, वालीवले वली वेल॥ कुमाणसने काउनी रे, वाली न वले वेल रे ॥ बेग ॥ त्यां ॥७॥ उदय रतन उपदेशथी रे, रीके जे पुरुष रतन्न ॥ तेहनां लीजें जामणां रे, जे करे शियल जतन्न रे॥ बे॥ त्यां० ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy