SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४) अथ दीवालीनुं स्तवन. १७ धन धन मंगल रे सकल दिन पूजी प्रजातें चाली॥श्राज मारे दीवाली अजुवाली ॥१॥ गावो गीत वधावो गुरुने, मोती थाल पूरावो॥ चार चार आगे चतुर सुहागण, चरण कमल चित्त सारी रे ॥ आज ॥२॥ धन धु: धनतेरश दीने, काले काली चउदश ॥पाप हणीजें पोसो किजें, कर्म मेलो सर्वे टाली रे ॥ आज मारे ॥३॥ अमासे तो परव दी वाली, फरती काक ऊमाली ॥घेर घेर तो दीवमीया फलके, रात दीसे अजुवाली रे ॥ आज मारे ॥४॥ अमासनी पाडलमी रातें, आठ करम दय टाली॥ श्रीमहावीर निर्वाणे पहोता, अजरामर सुखकारी रे॥आज मारे॥५॥पमवे तो वला जुहारपटो लां, ए रुतु रूमी सारी गुरु गौतमनां चरण पखाली, रीक पामी रढीयाली रे ॥याज मारे ॥४॥बीजे तो वली जावम बीज, बेनरमी श्रति वाहली ॥ ए पांचे दिन होय रे पनोता, एवे हरखे गा रे ॥ आज मारे ॥ ७॥ हरखविजयना पंमित बोले, करोने सेव सुंहाली॥ रूपविजयना पंमित बोले, जय जय वाजे ताली रे॥ आज मारे ॥॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy