SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७) श्राव वसे एणी परे, नवमा के गल; कवि नरपति श्म उच्चरे, उदरे वसंत राहु. एए कहि नरपति सुण बापडा, नवमा एननिवार; . मुगति तणो मारग लहै, नर बूटे संसार. ६० नाली मंगल कांग्ले, हारतणे अधिकार; एवे वाले वाटड़ी, कुणद न लको पार. ६१ जागंतां जाये कही, सूतां के सास; महीअलमांहे गोरमी, कीधा घणा निरास. ६५ नारी मोहे बापडा, जगनी मारणहारि; कवि नरपति इम उच्चरे, चामुंग रूप संसारि. ६३ ते माह्या ते रूअडा, ते मुनिवर ते मला जे नर नारी नवि कल्या, ते साचला ब्यब. ६४ तरणा केरी आग जिम, जिम उन्हाले मेह; तिम प्रमदानी प्रीतडी, पग पग आपे बेह. ६५ श्राप सवारथ आपणे, नारि वखाणण जाय; जे दूषण कविजन कहै, ते किम फूगं थाय. ६६ नारी दीवो कणकनो, क्यां मेलणको मग; घरमां जय मूसातणो, बाहिर ताणे कग्ग. ६७ नारी नयणे जाण रे, नाहक बेदम हार; नारी यारी जाणं रे, नरने बंधणहार. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003687
Book TitleStavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy