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१४ अलबेली आम्रपाली
लिच्छवी के अनेक युवक छह-सात पक्षों में बंट चुके हैं। इसमें सैकड़ों लिच्छवी युवक सम्मिलित हुए हैं। यदि किसी एक पक्ष के लिच्छवी युवक से तेरा पाणिग्रहण होता है तो दूसरे सारे पक्ष विरोध में खड़े हो जाएंगे। ऐसी परिस्थिति बन चुकी है । वैशाली गणतन्त्र की स्वतन्त्रता और सार्वभौम सत्ता को अखण्डित रखने के लिए यह आवश्यक है कि लिच्छवियों की एकता अखण्ड रहे, ऐसा गणनायक सोचते हैं । इसलिए तुझे जनपदकल्याणी के पद से विभूषित करना यही निरापद मार्ग है। ऐसा अपने कर्णधार सेनापति सिंह मानते हैं।" ___"कर्णधार ? पिताजी ! मैं तो निरन्तर नृत्य और संगीत की साधना में संलग्न रहती हूं । इसीलिए बाहर की परिस्थितियों से अनजान हूं। फिर भी कुछेक बातें मुझे ज्ञात हैं । मेरे शिक्षा-गुरु मुझे सदाचार, शील और आर्य नारी का कर्त्तव्य-बोध देते रहते हैं। उन्होंने मुझे स्पष्ट बताया है कि आज वैशाली का युवावर्ग विलासिता की आंधी में फंसा पड़ा है। जिस नगरी में एक समय धर्म की उपासना के सैकड़ों धाम थे उसी नगरी में आज रूप की उपासना के हजारों स्थान हैं । वहां हजारों बहनें अपने कृत्रिम हास्य से वैशाली के विनाश के लिए मारण-मंत्र की आराधना कर रही हैं। पिताश्री ! आप तनिक भी चिन्ता न करें। कल आप गणसभा में यह घोषणा करें कि मेरी एकाकी कन्या आम्रपाली आज सोलहवें वर्ष में प्रवेश करेगी। गणसभा के अपने नियम हैं । उन नियमों का एक सन्नारी के अधिकार के साथ कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता।" ____ “किन्तु पुत्री ! यदि मैं यह बात कहूंगा तो निश्चित ही गणसभा के सदस्य एकत्रित होंगे और तुझे जनपद कल्याणी बनाने का अपना निर्णय देंगे"महानाम ने कहा।
"गणतन्त्र को जो निर्णय करना है, वह करे । उस निर्णय को मानना या नहीं मानना, यह व्यक्ति की स्वाधीनता का प्रश्न है।" ___ "नहीं पुत्री ! मैं भी इस गणसभा का एक सदस्य हूं और गण सभा के निर्णय को स्वीकार करना प्रत्येक सदस्य का धर्म होता है।" ___ "अच्छा, मैं तो गणसभा की सदस्या नहीं हूं। कल मैं सोलहवें वर्ष में प्रवेश करूंगी और...'' कहती-कहती आम्रपाली विचार में पड़ गई।
महानाम ने कहा --"क्या कहना चाहती थी पुत्री !"
"मेरी मां मुझे कहती थी कि स्त्री पन्द्रहवें वर्ष को पूरा करने के पश्चात् पूर्ण स्वाधीन हो जाती है।"
"तेरी मां ने कहा वह यथार्थ है । गणसभा का भी यही नियम है।"
"तो फिर आप चिन्ता न करें। चलें, आराम से भोजन करें। मेरे अधिकारों के विषय में सोचने का किसी भी गणतन्त्र को कोई अधिकार नहीं हैं।" कहती हुई आम्रपाली पिता का हाथ पकड़ कर खड़ी हुई ।