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१२ अलवेली आम्रपाली
महानाम का मन कल गणसभा में आने वाले प्रश्न की भयानकता से कांप रहा था। वह सोच रहा था कि आम्रपाली को उसकी अवगति कैसे दी जाए ?
पिताश्री को कमरे में चहलकदमी देखकर आम्रपाली बोली-"पिताश्री ! ऐसा क्यों होता है, जो...?"
बीच में ही महानाम ने पुत्री की ओर देखकर कहा--- "तुझे याद है ? कल तेरा जन्म-दिन है।"
"हां, इसके लिए मैंने सारी तयारी कर रखी है। कल की रात्रि में मैं नृत्य की एक नयी विधि का भी प्रारम्भ करूंगी। किन्तु आपकी चिन्ता'.।" ___महानाम निकट आ चुका था। उसने पुत्री के मस्तक पर हाथ रखकर कहा-'मेरी चिन्ता सुलगती आग जैसी है, पाली ! स्नेह और कर्तव्य का संघर्ष मेरे मन का विलोडन कर रहा है । मैं तुझे कैसे कहूं कि कल प्रातः मेरे स्वप्न का अन्त होने वाला है।"
"आपके स्वप्न का अन्त ! ऐसा क्या है पिताजी ?"
"पूत्री! जिसका कोई उपाय नहीं है उस व्यथा को मैं तुझे कैसे बताऊं? आज से दो वर्ष पूर्व गणसभा ने मुझे आज्ञा दी थी कि..." कहकर महानाम आम्रपाली के सामने वाले आसन पर बैठ गया। . "ऐसी क्या आज्ञा थी? आपने कभी भी मुझे कुछ नहीं बताया ?"
"तेरे कोमल हृदय को आघात न लगे इसलिए गणसभा की आज्ञा तेरे कानों तक न पहुंचे, इसका मैंने ध्यान रखा था। किन्तु दो वर्ष का समय देखतेदेखते बीत गया। कल मुझे.." कहते-कहते महानाम रुक गया।
"कल क्या है 'पिताश्री ?"
"गणनायक के समक्ष मुझे यह कहना होगा कि मेरी पुत्री आम्रपाली आज सोलहवें वर्ष में प्रवेश करेगी।" महानाम ने गंभीर स्वर में कहा।
आम्रपाली ने हंसते हुए कहा- "इसमें चिन्ता जंसी क्या बात है? यह तो आनन्द का विषय है। आपकी आज्ञा से मैं कल प्रातःकाल सवा लाख स्वर्ण मुद्राओं का दान भी दूंगी।"
"बेटी ! तू नहीं जानती इस बात के पीछे कितनी वेदना छिपी है ? वैशाली का गणतन्त्र महान है, अजोड़ है और आसपास के राज्यों के लिए भय पैदा करने वाला भी है । इस गणतन्त्र की व्यवस्था और नियम गणसभा के द्वारा संचालित होते हैं।" ___ "यह तो मैं भी जानती हूं। परन्तु इसमें दुःख की क्या बात है ? पिताश्री, आप बात को टाल रहे हैं ? परन्तु मैं ऐसे ही मानने वाली नहीं हैं । आपको बात बतानी ही पड़ेगी। आपकी मनोव्यथा क्या है, यह जाने बिना मैं यहां से नहीं हटेंगी। पिताजी ! मैं आपकी मनोव्यथा को दूर करने का प्रयत्न करूंगी। मुझे