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अलबेली आम्रपाली ११
आम्रपाली ने देखा पिताजी के चेहरे पर ऐसी चिन्ता की रेखाएं उभर रही थीं, जिनको समझ पाना कठिन था। वह बोली-"क्यों पिताजी ! क्या अस्वस्थ
"नहीं, बेटी।"
"तो फिर भोजन लेने से इनकार क्यों किया ?" कहती हुए आम्रपाली पिताजी के नजदीक आई और उनके मस्तक पर हाथ रखकर निश्चय करना चाहा कि पिताजी ज्वरग्रस्त तो नहीं हैं।
महानाम ने पुत्री का हाथ पकड़ते हुए कहा--"पाली ! ज्वर जैसा कुछ भी नहीं।"
"तो फिर आपके चेहरे पर इतनी दर्दभरी रेखाएं कैसे उभर रही हैं ?" "बेटी ! संसार का दूसरा नाम है चिन्ता'।"
"परन्तु ऐसी क्या चिन्ता है कि आप इतने उदास हो गए है ?" कहती हुई आम्रपाली एक आसान पर बैठ गई।
महानाम पुत्री की ओर देखने लगा। दो क्षण देखने के पश्चात् उसने अपनी दोनों हथेलियों से अपना मुंह ढक लिया और उस समय जो चिन्ता की रेखाएं चेहरे पर उभरी आम्रपाली से वह छिपी नहीं रह सकीं।
शिशिरा और माध्विका द्वार के पास ही खड़ी थीं । आम्रपाली बोली--- "पिताश्री...!"
"हं..." कुछ रुदन की आवाज महानाम के मुंह से निकली।
"क्या हुआ ? क्या किसी ने आपका अपमान किया है ? क्या मेरी मां की स्मृति..."
"नहीं, बेटी! नहीं । तू मुझे कुछ भी मत पूछ । तू जा और भोजन कर ले।"
"पिताश्री ! आपके मन को चिन्ता को ज्ञात किए बिना मैं भोजन नहीं करूंगी।" आम्रपाली ने स्नेह भरे स्वर में कहा।
महानाम ने पुत्री की ओर देखा । वह जानता था कि आम्रपाली का आग्रह अटूट होता है । वह बोला-"चल, पुत्री ! मैं भी तेरे साथ भोजनगृह में चलता
"नहीं, पिताश्री. . . ! पहले आप अपने मन की बात बताएं. 'मुझसे क्या कोई बात गुप्त।"
महानाम दीर्घ निःश्वास छोड़ते हुए खड़ा हुआ और चिन्ताग्रस्त हृदय से इधर-उधर चहलकदमी करने लगा। ___ आम्रपाली ने द्वार पर खड़ी शिशिरा और माध्विका को जाने का इशारा किया। दोनों ने बाहर जाकर दरवाजा बन्द कर दिया।