________________
१० अलबेली आम्रपाली
महानाम अपने कक्ष में गंभीर विचारों में खोया हुआ बैठा था। प्रखंड में प्रज्वलित दीपमालाओं के प्रकाश में उसकी मुद्रा को सहज रूप में पढ़ा जा सकता था।
महानाम वृद्ध था, पराक्रमी था। उसका भव्य ललाट उसके वीरत्व की साक्षी दे रहा था। उसकी सबल भुजाएं उसके स्वास्थ्य की प्रतीति करा रही थीं। उस वय में भी उसके नयन-युगल तेजस्वी थे ।
फिर भी आज उसका मन चिन्ता से ग्रस्त था। उसके मन में एक ही विचार अनेक प्रश्न उभार रहा था। कल प्रातः आम्रपाली सोलहवें वर्ष में प्रवेश करेगी और अष्टकुल के गणनाथकों के समक्ष इसकी घोषणा करनी होगी।
फिर क्या होगा?
गणसभा में यह बात प्रस्तुत होगी और उसके नियमानुसार आम्रपाली को ।
आगे आने वाले विचारों से महानाम कांप उठता। वह बार-बार इतना ही सोचकर रुक जाता--उसके मन में आता. 'भाग्य ने वरदान स्वरूप एक पुत्री दी। इस प्रदत्त पुत्री को कितने लाड़-प्यार और आदर से पाला-पोसा 'इसको बड़ा किया। पद्मा की इच्छा के अनुसार इसके अंग-अंग में नृत्य सौर संगीत के संस्कार भरे । पद्मा चाहती थी कि किसी सुन्दर युवक के साथ आम्रपाली का विवाह हो और वह कुलवधू के मंगलमय गौरव से मंडित हो।
किन्तु लिच्छवियों के नयन किसी रूपवती कन्या को सह नहीं सके। गणनायकों ने लिच्छवी युवकों की एकता को खतरे में डालना नहीं चाहा इसलिए'।
ओह ! __महानाम का हृदय कांप उठता था। अपनी प्रिय पुत्री आम्रपाली वैशाली गणतन्त्र की आज्ञा के अनुसार जनपद कल्याणी बनेगी। हाय ! क्या परिणाम होगा?
आज तक आम्रपाली से यह बात छुपाई थी । किन्तु कल उसके सोलहवें जन्म-दिन पर जब वह यह सुनेगी तो निश्चित है कि उसके कोमल हृदय पर आघात लगेगा।
यह आघात कितना असह्य होगा?
ऐसे अनेक प्रश्नों में उलझा हुआ महानाम गंभीर चिन्ता के गर्त में उतर चुका था ।
और तब अपनी प्रिय पुत्री का मंजुल स्वर उसके कानों से टकराया"बापू!"
महानाम चौंका 'उसने द्वार की ओर देखा "प्रिय पुत्री आ रही थी।