Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व - कृतित्व
ने भी इन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया, किन्तु अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। कोई घटना किसी नई घटना को जन्म देने वाली होती है। मामा के शब्द भी रामरत्न को नई दिशा प्रदान करने वाले थे। यदि यह निमित्त नहीं मिला होता तो रामरत्न का जन्म जिस कार्य के लिए हुआ था उस राह पर वे कैसे बढ़ पाते।
अब रामरत्न के लिए भोपाल आकर्षणविहीन हो चुका था। वे यहाँ से अन्यत्र जाना चाहते थे। इसे भी संयोग ही कहा जा सकता है कि इन्हीं दिनों उज्जैन में सिंहस्थ मेला लग रहा था और भोपाल-निवासी ओसवाल वंशीय पारखगोत्रीय श्रेष्ठी केसरीमल जी का नौकर प्रेमदास ब्राह्मण सिंहस्थ मेला देखने के लिए उज्जैन जाने वाला था। रामरत्न प्रेमदास ब्राह्मण के साथ भोपाल से उज्जैन के लिए निकल पड़े। सिंहस्थ मेला देखकर रामरत्न मक्सी पार्श्वनाथ तीर्थ के दर्शन करते हुए महिदपुर पहुंच गए। इस समय विश्व पूज्य प्रातः स्मरणीय श्री मज्जैनार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. अपने शिष्यों सहित महिदपुर में विराजमान थे। रामरत्न को गुरुदेव के दर्शनों का लाभ सहज एवं अकस्मात् प्राप्त हुआ। गुरुदेव के शिष्यों में मुनिश्री लक्ष्मीविजयजी म. एवं मुनिश्री दीपविजयजी म. नामक दो बाल मुनि थे। इनसे रामरत्न का परिचय था। इन दोनों मुनिराजों के सहयोग से रामरत्न को पूज्य गुरुदेव के दर्शन के साथ-साथ वार्तालाप करने का भी अवसर मिल गया। पू. गुरुदेव के दर्शन करने एवं उनसे चर्चा करने के पर रामरत्न को लगा कि उसे मंजिल मिल गई है।
परिवारप्रशस्ति - ऊपर हमने पूज्य आचार्य देव श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी म. के जीवन से लेकर पूज्य गुरुदेव की सेवा में पहुंचने तक का विवरण प्रस्तुत किया है। अब संक्षेप में उनके कुल आदि का परिचय देकर अपना कथन समाप्त करेंगे।
किसी समय भीनमाल नगर में जैसपाल नामक एक राजपूत क्षत्रिय अवधराज्यान्तर्गत रायबरेली परगने में आया और अपने नाम से वहाँ जैसपालपुर नामक नगर बसाकर वहीं के आसपास के क्षेत्र पर विजय प्राप्त कर राज्य स्थापित किया। उसी समय वहाँ श्रीमद् जज्जासूरि नामक महाप्रभावक जैनाचार्य का जैसपालपुर में पदार्पण हुआ। राजा जैसपाल जैनधर्म के प्रति श्रद्धा रखता था। जैन साधु-संतों का आदर सत्कार करता था। जब उसे ज्ञात हुआ कि उसके नगर में महाप्रभावक जैनाचार्य का आगमन हुआ है। तो वह दर्शन वंदन और प्रवचनश्रवण करने उनकी सेवा में पहुंच गया। जैनाचार्य से प्रभावित होकर राजा जैसपाल ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया। राजा जैसपाल के पुत्र का नाम जिनपाल था। वह अपने नाम के अनुरूप इन्द्रियजित सिद्ध हुआ। राजा जिनपाल की सातवीं पीढ़ी में राजा अमरपाल हुआ। राजा अमरपाल से यवन आक्रमणकारियों ने जैसपालपुर छीन लिया। तब राजा अमरपाल वहाँ से बुंदेलखंड की राजधानी धौलपुर आकर बस गया और यहीं व्यापार करना प्रारंभ किया। जैसपालपुर से आने के कारण इनका जैसवाल गोत्र स्थापित हुआ । इनका वंशवृक्ष इस प्रकार है -
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