Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : व्यक्तित्व-कृतित्व - आप द्वारा रचित 'मेरी नेमाड़ यात्रा' में नेमाड़ क्षेत्र के ग्राम-नगरों-तीर्थों पर आपने ऐतिहासिक एवं भौगोलिक दृष्टि से प्रकाश डाला है। इसी प्रकार 'मेरी गोड़वाड़ यात्रा' में गोड़वाड़ क्षेत्र के ग्राम-नगरों के विषय में लिखा है। आपके द्वारा लिखा गया - ग्राम नगरों का इतिहास आज भी उपयोगी है और शोधकर्ताओं के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रदान करता है।
इसी प्रकार आपके द्वारा लिखे गये यतीन्द्रविहारदिर्शन के चारों भाग भी इतिहास विषयक सामग्री से भरे पड़े हैं विहारसाहित्य में प्राय: इस बात की सूचना रहती है कि कौन सा ग्राम या नगर कौन से ग्रा या नगर से कितनी दूर है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी देनी हो तो ठहरने आदि के स्थान के साथ धार्मिक स्थानों का उल्लेख कर दिया जाता है, किंतु आप ने केवल इतना ही नहीं किया। अपने विहार दिग्दर्शन साहित्य में आप ने ग्राम या नगर की पुरानी जानकारी, उसका इतिहास तथा अन्य महत्त्वपूर्ण बातों का समादेश किया है। साथ में वहाँ के प्रतिमालेख, शिलालेख (यदि हैं तो) वे भी दे दिये हैं। ऐसा विवरण देने से आप की इन पुस्तकों का महत्त्व काफी बढ़ गया है। अनेक प्राचीन स्थानों का जो विवरण
आप ने दिया है, वह तो अत्यन्त ही प्रशंसनीय है। जिस व्यक्ति ने वे स्थान नहीं देखे हैं, और इन पुस्तकों में ही उनकी जानकारी प्राप्त कर लेता है, तो वह उसके लिए महत्त्वपूर्ण हो जाती है फिर यदि वह उन स्थानों का भ्रमण करता है और अपने द्वारा पढ़ी गई जानकार को ध्यान में रखता है, तो प्रत्यक्ष देखकर वह आनन्दित हो जाता है। उन व्यक्तियों के लिए भी यह सामग्री उपयोगी है, जिन्होंने उन स्थानों की यात्रा की है और उन स्थानों की जानकारी प्राप्त नहीं की है। इनके अध्ययन से उन व्यक्तियों की जानकारी पूर्ण हो जाती है और कभी-कभी उस स्थान के अवलोकन की यात्रा करने की पुनः इच्छा होने लगती है। जब आप द्वारा लिखित विवरण को पढ़कर पाठक के मन में उस स्थान को देखने की जिज्ञासा जाग्रत हो जाती है तो यहीं लेखक का प्रयास सफल हो जाता है।
'तीन स्तुति की प्राचीनता' नामक पुस्तक भी इतिहास की श्रेणी की पुस्तक है। इसमें आप ने जैनागमों के और इतिहास प्रमाण देकर तीन स्तुति की प्राचीनता सिद्ध की है।
इन सबके अतिरिक्त यहाँ एक बात और भी रेखांकित करना आवश्यक प्रतीत होता है आचार्य भगवत् को न केवल इतिहास विषय से प्रेम था, वरन् वे इतिहासलेखन में भी गहरी रूचि लेते थे। धार्मिक इतिहास के साथ ही साथ जातिगत इतिहासलेखन के लिए उन्होंने अपना मार्गदर्शन और प्रेरणा प्रदान कर श्री दौलत सिंह लोढ़ा से प्राग्वाट जाति का इतिहास जैसा महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखवाया। आप की इस अमूल्य देने को विस्मृत नहीं किया जा सकता।
आप ने कुछ चरित्रग्रंथों की भी रचना की। मूलरूप में देखा जाये तो ये चरित्रग्रंथ भी इतिहास के अंग ही होते हैं। कारण कि जो इतिहास पुरुष होते हैं फिर चाहे वे धार्मिक इतिहास के हों, अथवा सामाजिक इतिहास के, उनका आदर्श चरित्र सबके लिए अनुकरणीय होता है। अपने गुरु भगवंतों के चरित्र को प्रस्तुत करना गुरु-परम्परा के इतिहास का एक अंग है।
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