________________
जलमेषा परित्रातुम् V. 58.gra जलं प्रसन्नं कुसुमप्रहासम् IV. 30.53a जलं प्रस्त्रवणादिव VI. 96.32d जलं प्रस्रवणाविव VI. 45.21d ,, , , 88.6od जलरामण्यकं तथा III, I5.5b जलराशिमिरावृतम् IV. 64.5d जलराशिः समुत्थितः VI. 76.84b जलं वित्रस्तपन्नगम् VI. 21.27d जलशय्यां समासतः VII. 76.17d जलसिक्तं यथा सस्यम् VII. 36.4c जलसिक्तेन नित्यशः I. 5.8d जलात्कूलमुपागमत् VII. 88.15d जलाघाताट्टहासोग्राम् II. 50.16a जलान्मत्स्याविवोद्धृतौ II. 53.31d जलान्यनुपभोग्यानि III. 16.5c जलापूरितमन्नलिम II. I03.26b जलार्थ वा नदीं गता III. 60.9d जलार्द्रगानं तु विलप्य कृच्छा! II. 63 53a जलास्येव दुन्दुभेः III. 27.8d जलाश्चिक्रवाकाथ IV. 50. Iva
, ,, 50.16a जलावगाह मुस्पर्शाम VII. 31 23c जलाशी मारताहारः VII. 3.12C जले कुम्भस्य पूर्यतः II. 63.22b ,, ,, ,, . 6.1.15b जले कीडन्ति वानरः VI. 4.86d जले तरुषासूर्यवत् IV. 1.62d जले तरुणसूभिः IV. 1.642 जलेन पतिताच V. 14.30a जलोदं सागरं शीघ्रम् IV. 40.48a जलोद्धृतमिवाम्बुजम् II. 30.25d जलोमिमिव निःस्वनाम् II. II4.7d जलीधैरिव वासवः VI. 102.61d जलं सजलदं तदा I. I.71b
जवनाश्चैकपादकाः IV. 40.26d जवनौ तुरगोत्तमौ II. 97.24d जवे चारुतराऽभवत् V. I.74d जवेन महता युक्त: VI. 74.51a ,, वानराः शीघ्रम् VI. 50.29c ,, स्वर्गतौ भृशम् IV. 58.5b जवेनात्मनि संस्थेन VII. 36.27c जयेनाप्लुत्य च पुन: VI. 75.59c जवेनाभ्यगमं पथि V. 58.21d जहतामेव जीवितम् VI. 8.18d जहर्ष च ननाद च V. I.IO2d
, 44.5d ,, चापूर्यत चाह्वोन्मुखः V. 47.16d
, हनुमान्कपिः V. 3.12d जहातु स्वयमम्बरम् IV. 30.45d जहार च तदा खड्गम् VI. 97.28c
द्विविदो गदाम् VI. 76.31d ,, पापस्तरुणी विचेष्टतीम् III. 53.26c ,, भार्यां रामस्य I. I.53a ,, रावणं वाली VII. 34.22c ,, लक्ष्मण. श्रीमान् VI. I00.15c ,, समरे प्राणान् III. 25.28c ,, स शिरस्त्राणम् VI. 97.32c ,, मुग्रीवमभियगृहा VI. 67.68c जहाराकाशमाविश्य HI. 52.31c जहारात्मविनाशाय III. 52.43e
, IV. 39.6a जहास च मुमोद च I. 46.17d
,, विकृतस्वनम् VI. 67.144b जहि कोपमरिन्दम IV. 35.22d ,, तं राक्षससुतम् VI. 85.22c ,, तांश्च त्रिलोचन VII. 6.27b ,, ताञ्छरमुख्येन I. 76.16c ,, तान्मधुसूदन VII. 6.16b .. तौ सवनौकसौ VI. 78.3d
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org