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सकाशे मम राघव VII. 76.28b ,, रघुनन्दन II. I..20d .. लक्ष्मणस्य च VI. 20.27d , स महास्त्रवित् III. II.24b स किंचिदारा संप्राप्तः V. 57.14c , किंचिदिदमुत्तरम् I. 15.1b सकिनरमहोरगाः I. 21.12d
, ,, 4332b .. ,, 67.9d
VI. I07.48d सकिनरमहोरंग: V. I.97b
VI. 69.13b स किमर्थ नरवरः V.67.22a ,, किष्किन्धां प्रविश्य त्वम् IV. 30.70a ., कीर्यमाणः कुसुमाक्षतोत्करैः VII. 32.73a .. कुम्भकर्णस्य च गर्जितानि VI. 14.1b
, भुजो निकृत्तः VI. 67.159a . वचो निशम्य VI. 67.59a , , , , , 150a
, शरान् VI. 67.1ora कुम्भकर्ण कुपितो जघान VI. 67.18a ,, ,, महेन्द्रः VI. 61.15a
, सुरसैन्यमर्दनम् VI. 67.17ba ,, कुम्भकर्णः समवेश्य हर्षात् VI. 65.55c ,, कुम्भकर्णोऽथ विवेश लङ्काम् VI. 678za ,, कुम्भकर्णो युघि वानरेन्द्रम् VI. 67.68b ,, कुम्भकर्णोऽस्त्रनिकृत्तबाहुः VI. 67.157a ,, कुम्भकर्णो हृतकर्णनासः VI. 67.87a ,, कुम्भं च निकुम्भं च VI. 7546a स कुण्डलाः शुभाचारा: VI. I25.44c स कुरुष्व महोत्साहम् V. 38.38a. सकुश मुनिपुंगवम् I 48.25b सकुशमन्त्रसत्कृतैः VII. 66.7b स कृत्तचापः शरताडितश्च VI. 59.105a , कृत्तबाहुस्तुमुलं ननाद VI. 67.154d
। स कृत्तमूलःसहसेव वृक्षः VI. 70.59a सकृत्तु प्रहरेदानीम् VI. 59.65a स कृत्वाथोदकं तूर्णम् II. 64.51a , कृत्वा निनदं घोरम् V. 45.Ila ,,, निश्चयं राजा I. 38.24c ,, ,, ,, राम I. 65.4a , , , विष्णुः I. 16.10a ,. नैष्ठिकी बुद्धिम् I. 63.14c
पृथिवीं कृत्स्नाम् VII. 67.6a , भैरवं नादम् III. 2.9c
, , , , 25-37a ,, ,, भ्रुकुटिं क्रुद्धः VI. 102.38c ., महतोऽप्यर्थात् IV. 29.14 1., ,, सागरे सेतुम् VI. 24.31a
,, ,, हृदयेऽमर्षम् VII. 67.16a सकृत्समीक्ष्यैव सुनिश्चितं तदा VI. 12.28c सकृदन्वारभेत वा II. 64.62d सकृदेव कृतो रावः VII. 32.22a ,, प्रपन्नाय VI. 18.33a
, समिद्धस्य VI. 73.22a सकृदृष्टास्वपि स्त्रीषु II. II8.6a सकेतकोदालकनारिकेले V. I.200c सकेसराश्वोत्पलपत्रहस्ता V. 7.14 स कैकेय्या गृहं श्रेष्ठम् II. I0.IIC सक्तं ग्राम्येषु भोगेषु III. 33.3a ,, दानवपुंगवम् IV. 51.14d सक्तः कपिवृषस्तदा IV. 31.22b सक्ता मधुवने तदा V. 62.8d ,, रुधिरधाराभिः III. 7336a सक्ताः कनकबिन्दवः II. 85.14d
,, कौशेयतन्तवः II 88.15d सक्तो मिथ्याप्रतिश्रवः IV. 34.15b सक्थिनी च शिरश्चैव III. 7I.IMa स क्रुद्धो व्याजहार ह III. 4.18d
क्रोधवशमापन्नः VI. I07.37c
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