Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 1175
________________ २३४० हा कौसल्ये न पश्यामि II. 64.76a , जीवलोकस्य हितः प्रियश्च V. 28.IIC ,, जीवितेशाङ्ग हतं सुपुण्यम् V. 54.40b हाटकप्रतिसंछन्नान् IV. I.21c हा तात हा पुत्रक कान्त मित्र V. 54.40a , नाथ मम वत्सल IV. 25.4od ,, नाथेति च सर्वशः VI. II0.4b ,, प्रिया सा माम् VI. 5.7c , , विनिर्दन्ती III. 21.4c ,, नु तद्दष्कृतं कर्म VII. 24.150 , नृशंसाद्य कैकेयी II. 495a , नृशंसे ममामित्रे II. 64.76c ,, पश्चिमा मे संप्राप्ता VI. III.38c ,, पितृप्रिय मे नाथ II. 64.75c , पुनर्लक्ष्मणेति च V. 25.IIb " पूर्णचन्द्रप्रतिमानवक्त्र V. 28.11b ,, प्रिये व गता भद्रे III. 60.35c ,, प्रियेति रुदन्धैर्यम् IV. 6.17c , , विचुक्रोश III. 61.29c ,, भतॆति परिकृष्य II. 65.22c ,, भ्रातर्मनुजश्रेष्ठ VI. IOI.I9c ,, मम प्रिय पश्य माम् IV. 25.41b , ममायासनाशन II. 64.75b ,, ममार्ये क्व याताऽसि III. 62.9c , ममास्मि गतः सुत II. 64.75d ,, महाराज रामेण II. 66.18a ,, महार्ह महाबाहो IV. 25.4la , मृतोऽयमिति ज्ञात्वा II. 66.16c हारकेयूरवस्त्रैश्च VI. 53.3Ic हारनूपुरकेयूर- V. 1 26a हारभारावभासिते VII. 8.13b हारस्ताराधिपद्युतिः III. 52.33b हारं च शशिसंकाशम् VI. 65.26c ,, हेमसूत्रं च II. 32.7a , जनकनन्दिनी VI. 128.79d | हा राक्षसचमूमुख्य VI. 92.6c ,, राघव महाबाहो II. 64.75a ,, राजन्सुकुमारं ते VI. III.340 हारा ज्वलनसंनिभाः III. 5.17b हा राममातः सह मे जनन्यः V. 28.8b , राम रामानुज हा II. 59.26a ,,, विजहासि नौ II. 42.3rd ,, सत्यव्रत दीर्घबाहो V. 28.IIa ,, ,, लक्ष्मण हा सुमित्रे V. 28.8a ,, रामेति च दुःखार्ता V. 25.Ita ,, जनाः केचित् II. 40.38a ,, ,, विचुक्रुशुः II. 57.lud हारा विकीर्यन्त इवावभान्ति IV. 28.49d हाराः कासांचिदुद्गताः V. 9.48b हारीताः सकिरातकाः I. 55.3d हारेण महता कपिः VII. 40.26b हारेणोरसि राजता V. 49.7b हात्तिस्य मतिर्जाता I. I0.13c हा लक्ष्मण महाबाहो III. 49.24a " " , " 60.35a ,, हतोऽस्मीति III. 57.8c हालाहलमहाविषम् I. 45.20b हालाहलं विषं घोरम् I. 45.26a हावयन्ती हुताशनम् II. 20.16d हावयामास विधिना II. 25.27c हा वानर महाराज IV. 25.400 ,, वीर रिपुदर्पघ्न VI. 68.10a है, वैदेहि तपस्विनि II. 59.26b , श्वभूर्मम कौसल्ये V. 25.II ,, सकामाद्य कैकेयी III. 62.10a हास ते नृपते सौम्य II. 35.21c ,, मुक्त्वा दशाननः VII. 20.22b ,, शंसामि ते यदि II. 35.22b हा साधि वरवर्णिनि III. 62.9d ,, सीतेति पुनः पुनः III. 60.35d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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