________________
, 36.6a
ततः सर्वा दिशो दृष्ट्वा III. 25.36a ' ततः सहस्ताभरणान् VI. II7.5a ,,, ,, राजा IV. 45.8a
,, सहस्रनयनः VII. 36.10a ,, ,, नरेन्द्रस्य II. 65.25a
,, सहस्रयूथाश्च VI. 42.17a ,, सर्वाः प्रकृतयः VII. I07.12a ,, सागरवेलायाम् VI. 21.1a ,,, , , 109.14a ,, गृहमागम्य II. II0.23c ,, समापेतुः II. 87.6a
,, साविति तद्वाक्यम् I. 8.10a सर्वास्त्रविद्वीर: VI. I07.58c
,, . , , 12.10c सर्वे निवर्तिताः VI. 66.31d
,, सा नवमे मासि VII. 89.23a , नृपतयः I. 66.17c
,, सायाह्नसमये II. 57.5a ,, महात्मानः VII. 85.10a
,, सा राक्षसी गर्भम् VII. 4.24a ,, मुनिगणा: I. 69.16c
,, ,, राक्षसेन्द्रेण III. 49.23a ,, ,, समागम्य I. I3.I&a
,, ,, वक्रकेशान्ता V. 31.16c ,, ,, सुरगणाः VII. 86.7a
,, ,, शापदोषेण VII. 56.26a ,, स लङ्कापुर पर्वताग्रे V. 54.31a
,, ,, संप्रतिश्राव्य II. I07.5a ,, स लम्बस्य गिरेः समृद्धे V. 1.200a ,, ,, ह्रीमती बाला V. 27.47a ,, सलीलमादाय VI. 46.34a
,, ,, सरमाभवत् VII. 12.27b ,, स वरदः साधुः II. 35.25a ,, स वाक्यैर्मधुरेहनुमत: VI. 126.55a
, , 58.9Ic ,, स वालिनं हत्वा V. 3I.IIC
,, सिद्धिमवाप्स्यसि I. 62.2cd ,, संवर्तयामास V. 3.40c
,, सिंहासनं हित्वा VII. 77.14C ,, संवत्सरे पूर्णे I. 66.22c
,, सीता ददर्शाभी VI. 47.18a ,, संवदतोरेवम् VII. 51.29a
, सीतामपश्यंस्तु V. 58.53a ,, स शर्वरीं प्रीतः II. II9.16a ,, सीतामुपागम्य V. 23.3a ,, ,, शिखरे तस्मिन् V. 35.28c
, ,, 27.2a ,, सशिष्यो भगवान् I. 2.38e
,, सीतां परिष्वज्य III. 5.Ic , स शैलाभिनिपात भग्न: VI. 70.31a ,, , महाभागाम् I. 77.IIC ,, स शोकं प्रविवेश पर्थिवः II. 61.27
II. 117.21a स सचिवेभ्यस्तु IV. 2.5a |
VI. II4.9a , सचिवैः सार्धम् VII. 14.1a ,, सीतां शिरःस्नाताम् VI. II4.14a ,, संज्ञामुपलभ्य कृच्छ्रात् VI. 67.84a ,, समस्तास्ताः V. 24.1a
,, संदीपितकोपवह्निः VI. 72.17a ,, ,, समानीय I. 73.25a ,, स सुमहाप्राज्ञः IV. 4.33a
,, सुकेशो वरदानगर्वितः VII 4.32a , सस्त्रीपुमांसस्ते VII. I09.15a ,, सुखतरं सर्वे II. I7.9e , स हरिशार्दूल: V. 3.37a
, सुखं नाम विषेत्रसे सुखी IV. 34.19c , , , , 3.39a
,, सुखमवाप्नुयाम् II. 13.12d
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org