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पराक्रमाजिगमिषुरेव दण्डकान् II. 2:.64b | परा प्रीतिमुपागता: V. 57.32b पराक्रमेण वीर्येण VI. 37.22c
,, प्रीतिमुपागमत् VII. IOI.Id पराक्रमे मतिं वीरः V. 39.12c
,, प्रीतिमुपासताम् VII. 39.30d पराक्रमेषु विख्याताः IV. 40.4c
, भवति मे प्रीतिः II. 12.12c पराक्रमोत्साहमतिप्रताप VII. 36.43a परामिजिद्गन्धनगन्धवाहः VI. I09.12b पराक्रमोत्साहमनस्विनां च V. 52.22a परामृश्य महाबल: VI. 88.17b पराक्रमोत्साहविजृम्भितार्चिः VI. 109.Ila परामृश्याङ्गदो बली VI. 76.9b पराक्रमोत्साहविवृद्धमानसः V. 47.28a परायणमवस्थितः VI. 89.8b पराकमो ह्यस्य मनांसि कम्पयेत् V. 48.28c परावमन्ता विषयेषु सङ्गवात् III. 33.23a
" , रणे विवर्धते V. 47.2gb परावरज्ञो भूतानाम् V. 52.7c परार्यकालागुरुचन्दनाहः V. 29.3b
, यश्च स्यात् II. I06.5a परार्घ्यकालागुरुचन्दनाहम् V. 4.30c परावर प्रत्ययनिश्चितार्थ: V. 52.16b पराय॑मिव चन्दनम् II. 30.13d
परा विद्याधरस्त्रियः V. 12.20b पराासनभूषितम् V. 6.7b
परावृत्तमपावृत्तम् VI. 40.25c परास्तिरणोपेताम् V. 9.27a
परां ब्रीडामुपागमत् I. I.8Id पराये काञ्चनत्वचि III. 43.35b
" , VII. 63.1b परायों चाप्युपानही IV. 26.27d
परा संभावना च मे VI. 62.20b पराङ्मुखमवाङ्मुखम् I. 28.4d
परां संमृद्धिं लङ्कायाः VI. 3.8c पराङ्मुखवधं कृत्वा IV. I7.16a
परासुमिव तोयेन V. 66.8c , पापम् VII. 8.4a
परा हि सर्वभूतानाम् IV. 66.36c पराङ्मुखे कृते देवे VII. 7.40a
परिकालयते वाली IV. 46.IIC पराङ्मुखोऽपि जग्राह VII. 34.20c परिकाल्यमानस्तु तदा IV. 46.16a पराङ्मुखोऽप्युत्ससर्ज VII. 7.42a
परिकीर्णे महाद्विपः V. II.12d पराजयश्च न प्राप्तः VI. 27.19c
परिकीर्णो ययौ तत्र IV. 38.15a पराजित्य च वासुकिम् III. 32.13d परिक्रमति यः सर्वान् VI. 37.30a
, जहार यः III. 32.14b परिक्रम्य ततः शीघ्रम् VI. 51.20c ,, सुभैरवाम् V. 58.50b
,, महीमिमाम् VI. 66.1gb परां तुष्टिं प्रदास्यति I. 49.7b
परिकम्य हुताशनम् VI. II6.27b परात्मसंमर्दविशेषतत्त्ववित् V. 41.70 परिकान्ता प्रदक्षिणाम् IV. 66.32d परा त्वत्तो गतिवीर III. 6.20a
, मही सर्वा I. 40.8a पराधीनेषु गात्रेषु VI. II6.9c
परिकामन्ति शास्त्रतः I. 14.3d परानभिमुखो ययौ VI. 82.17b
परिक्रीड यथासुखम् V. 24.34b परान्तकाले हि गतायुषो नराः VI. 16.26c परिक्लान्तस्य मे तात III. 68.10a परान्वा हन्ति संयुगे VI. I09.17d परिक्लिश्य समस्तस्ताः V. 58.84c परां प्राप्स्यसि चापदम् V. 21.22d | परिक्लिष्टमिवोत्पलम् II. 104.25b
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