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प्रविश्य सीतामासाद्य VII. 46.6c ,, सुदुरासदाम् V. 2.45b ,, हरिपुङ्गवाः IV. 31.21b ,, हरियूथपाः VI. 69.45b
,, हरिवाहिनीम् VI. 71.37b प्रविश्यानुपलक्षितौ VI. 25.4b प्रविश्यान्तःपुरं शीघ्रम् VI. 123.30c
, सीताम् VI, II4.8c प्रविश्यायोधनं घोरम् VI. II0.3c प्रविश्यारिबलं भीमम् VI. 97.8c प्रविश्याश्वास्य चापि त्वम् VI. 64.31a प्रविश्यासह्य परिखम् II. 70.IC प्रविष्टं तत्र मां देवि II. 21.I7c
,, तु तदा रामम् VI. 93.18a प्रविष्टः पयसां निधिम् VII. 23.4b
,, पुरतो धन्वी VI. 41.26c प्रविष्टं पुरुषर्षभम् IV. 34.1b प्रविष्टः प्रमदावनम् V. 18.27d प्रविष्ट भीमविकान्तम् IV. 26.22c प्रविष्टमात्रे ज्ञातोऽहम् VI. 30.72 प्रविष्टं राजभवनम् VII. bo.8a
,, वानरेश्वरम् IV. 26.Igd प्रविष्टः शत्रुसैन्यं हि VI. I7.1ga प्रविष्टश्च सुदुस्तरम् III. 34.2b प्रविष्ट श्वाश्रमं पुनः IV. 60.17b प्रविष्टः सत्त्वमाश्रित्य VI. I.5a ,, सत्त्वसंपन्नः V. 4.4a ,, सर्वमन्त्रिभिः IV. 43.3d , स स्वमालयम् IV. 63.1b ,, सह मन्त्रिभिः VII. 20.26d ,, सागरं तदा VII. 28.20b प्रविष्टस्तु दुरास दम् IV. I0.I9b
,, वनं घोरम् III. 7.4a प्रविष्टस्य वधो भवेत् IV. II.53b प्रविष्टा गोमयहदम् V. 27.33d
। प्रविष्टा चासि मैथिलि V. 24.31b
,, परणीतलम् VI. I00.42d ,, निर्जनं वनम् V. 16.1gd प्रविष्टानि हुताशनम् VII. I0.IId प्रविष्टान्सागरं भीमम् VI. 8.8c प्रविष्टाः पितृशासनात् III. I2.4b प्रविष्टायां तु तारायाम् IV. 16.13a ,, ,, सीतायाम् VII. 99.3a
, हुताशं तु VII. 18.Ia प्रविष्टा राक्षसाकुला V. 35.70d ,, राजभवनम् VII. 63.:3a
,, वानरार्दिता: VI. 90.79b प्रविष्टावाश्रमपदम् III. 12.8a प्रविष्टा शोकमोहिता IV. 16.12d प्रविष्टाश्च रिपोर्बलम VI. 37.8b. प्रविष्टासि मनो मम VI. 48.20d प्रविष्टासु पुरीं स्त्रीषु VI. III.122c प्रविष्टाः सूर्यरश्मयः VI. III.82b ,, स्म पिपासिताः IV. 51.3b ,, ,, पुराऽदृष्टम् V. 33.29c ,, ,, रसातलम् VII. II.6d प्रविष्टा हरिशार्दूलाः IV. 50. I9a
,, हव्यवाहनम् VII. I7.14d प्रविष्टे दण्डकावनम् III. 37. I Id
,, नगरं मयि VI. 90.7d प्रविष्टेन निवर्तितुम् IV. 52.26b प्रविष्टे राजनि यथा IV. 60.16c
,, वानरे गुहाम् IV. 27.1b प्रविष्टोऽकर्दमं ह्रदम् V. 27.26c प्रविष्टो दण्डकारण्यम् III. 47.21d ,, दण्डकावने III. 39.2d , दण्ड कावनम् IV. 52.4d
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V. I.145b " , 51.5d
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