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त्रैलोक्ये नास्ति यो द्वन्द्वम् VII. I9.25a
नित्यासंतुष्टौ VII. 9.38c ,, यद्धि वर्तते VII. I7.18d , , , , 49.9d ,, यः प्रभुश्चैव VII. 26.26c ,, विप्रणाशिते III.64.67b ,, सचराचरे I. 2I.IIb
, , VII. 27.Iod त्रैलोक्योत्सादनार्थिमिः VII. 34.44d त्रैलोक्पोद्वेगदं महत् VI. III.48d व्यम्बकाय युयुत्सवे I. 75.12b व्यम्बकेण महात्मना VII. 63.25b
,, यथान्धकः VI. 43.6d व्यहोश्वमेघः संख्यातः I. 14.40a त्वं कत्थसे महाराज II. 13.3a ,, कर्म कृतवानेतत् III. 49.28a ,, कुम्भकर्णश्च यथार्थजातम् VI. 14.10b ,, कृद्धस्त्विह कामात्मा VII. 30.29a ,, क्षिप्रं विनशिष्यसि III. 21.20b त्वक्ष्याम्यहं स्वकं राज्यम् VII. 89.16a त्वं गच्छारिष्टमव्यग्रः VII. 82.13a. , गतिः परमा देव I. 15.25c ,, परमेशान VII. 85.18a ,, गतिं प्राप्स्यसे वीर II. 52.18c ,, गतिः सर्वभूतानाम् I. 45.28c ,, गतिस्त्वगतीनां च II. 64.10a त्वचा प्रधानया ह्येषः III. 43.49a त्वचित्ता त्वत्परायणा VI. II8.8b त्वच्छोकक्लान्तचेतसाम् II. 52.43d त्वच्छोकविमुखो रामः V. 38.48d
, , ,, 40.13a
, , ,, 67.25c स्वच्छोकाद्वतचारिणम् VI. 120.20d त्वं च तस्य न कश्चन II. I08.10b ,, ,, तस्याः पतिर्वरः III. 34.20d
,, ,, धर्मादतिक्रान्तः IV. 18.24a ,,,, लङ्केश्वरस्तात VII. II.ga ,, ,, शिष्यो महात्मनः VII. 80.9d ,, ,, शोकनिपीडिता V. 35.71b ,, ,, सुग्रीव वाली च IV. 12.300 ,, चानुकूला वैदेहि II. 95.16c ,, चापि गच्छ भद्रं ते VII. 76.18c ,, ,, मां तस्य मम प्रियस्य IV. 24.39a , चाश्रमपदे सुप्तः VII. 89.13c , चैव नरशार्दूल I. 31.7a. ,, जयेति पुनः पुन: VI. 102.6d त्वत्कारणाद्राम सुरैर्हि सृष्टाः VII. 36.47d
,, ,, ,, ,, ,, 48d त्वत्कृता प्रचरिष्यति I. 2.37d त्वत्कृते च निमिष्यन्ति VII. 57.16a ,, ,, महाराजः II. 9.24c ,, जनकात्मजे VII. 47.IId ,, तमनिद्रा च V. 35.44a ,, तुल्यमागतों II. 743d त्वत्कृतेन च नाम्नाथ I. 44.5c
, भविष्यति III. 56.12d
, मया प्राप्तम् II. 52.51a त्वत्कृते नहि सर्व स्यात् VII. 84.16c
,, निधनं गतः IV. 17.16d त्वत्कृतेनैव नाम्ना वै I. 47.7a त्वत्कृते मर्षयाम्यहम् V. 40.9d ,, मे पिता वृत्तः II. 74.6a. , रघुनन्दन VII. 76.8d ,, वै हरीश्वर VII. 39.18d , शङ्कितैरनौ III. 30.12c , सा कृता वत्स II. 45.24c , हि मम प्राणाः VII. 80.14c ,, ,, मया सर्वम् II. 72.52c त्वत्त एव मया श्रुतम् V. 38.39b स्वत्तः प्रियतरो मम II. II.5b
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