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लोग नामि कुलकर के पास गये। उन्होंने कहा – 'ऋषभ को तुम अपना राजा बनाओ।'
लोग वापिस लौटकर आये बोले – 'आपही का राज्याभिषेक करने की नाभि कुलकर ने हमें आज्ञा दी है।'
लोग विधि जानते न थे। उन्होंने पहिली बार ही राज्याभिषेक की बात सनी थी। वे केवल जल चढाने ही को अभिषेक करना समझकर जल लेने गये। उस समय इंद्र का आसन कंपा। उसने अवधिज्ञान द्वारा प्रभु के राज्याभिषेक का समय जाना। उसने आकर राज्याभिषेक कर प्रभु को दिव्यवस्रालंकारों से अलंकृत किया। इतने ही में युगलिये पुरुष भी कमल के पत्रों में जल लेकर आ गये। वे प्रभु को वस्त्राभूषणों से अलंकृत देखकर आश्चर्यान्वित हुए। ऐसे सुंदर वस्त्राभूषणों पर जल चढ़ाना उचित न समझ उन्होंने प्रभु के चरणों में जल चढ़ाया और उन्हें अपना राजा स्वीकारा। इंद्र ने उन्हें विनीत समझ उनके लिए एक नगरी निर्माण करने की कुबेर को आज्ञा दी और उसका नाम विनीता.रखने को कहा। फिर वह अपने स्थान पर चला गया।
कुबेर ने बारह योजन लंबी और नौ योजन चौड़ी नगरी बनायी। उसका दूसरा नाम अयोध्या रखा गया। जन्म से बीस लाख पूर्व बीते तब प्रभु प्रजा का पालन करने के लिए विनीता नगरी के स्वामी हुए। अवसर्पिणी काल में ऋषभदेव ही सबसे पहिले राजा हुए। वे अपनी संतान की तरह प्रजा का पालन करने लगे। उन्होंने बदमाशों को दंड देने और सत्पुरुषों की रक्षा करने के लिए उद्यमी मंत्री नियते किये; चोर, डाकुओं से प्रजा को बचाने के लिए रक्षक-सिपाही नियत किये। हाथी, घोड़े रखे; घुड़सवारों की और पैदल सैनिकों की सेनाएँ बनायी। रथ तैयार करवाये। सेनापति नियत किये। ऊँट, गाय, मैंस, बैल, खच्चर आदि उपयोगी पशु भी प्रभु ने पलवाये।
- कल्पवृक्षों का सर्वथा अभाव हो गया। लोग कंद, मूल, फलादि खाने लगे। काल के प्रभाव से शालि, गेहूँ, चने आदि पदार्थ अपने आप ही उस समय उत्पन्न होने लगे। लोग उन्हें कच्चे ही, छिलकों सहित खाने लगे। मगर वे हजम न होने लगे इसलिए एक दिन लोग प्रभु के पास गये। प्रभु ने
: श्री आदिनाथ चरित्र : 20 :