Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
भाषा
APARSALESEAGESGARRECCLOSERECEMB
है कुछ मंदता रहती है इसलिये 'थोडा कष्ट होता है किंतु जैसा जैसा ज्ञान अधिक होता चला जाता
है वैसे वैसे कष्ट भी वढता चला जाता है। मूर्खकी अपेक्षा विद्धानको अधिक कष्ट जान पडता है यदि समस्त ज्ञान प्राप्त हो जायगा तो कष्ट भी अत्यंत भोगना पडेगा जहां कष्ट है वह मोक्ष अवस्था नहीं मानी जा सकती इसलिये ज्ञानादि समस्त विशेष गुणोंके अभावसे ही उन्होंने आत्माकी मोक्ष अवस्था मानी है सांख्य सिद्धांत और इस सिद्धांतमें इतना भेद है कि सांख्य सिद्धांतके अनुसार र तो मुक्तात्माकी अवस्था सोते हुए मनुष्य की दशा है अर्थात् चैतन्य तो विद्यमान है परंतु जानना है। देखना नही तथा नैयायिक वैशेषिक मतके अनुसार मुक्तात्मा की अवस्था चैतन्यशून्य आकाशके | समान जड है। यदि कहा जाय कि__ कार्यविशेषोपलंभात्कारणान्वेषणप्रवृत्तिरिति चेन्न अनुमानतस्तत्सिद्देर्घटीयंत्रभ्रांतिनिवृत्तिवत् ॥९॥
जिस प्रकार ज्वर आदि रोगोंके साक्षात् दीखनेपर वैद्य लोग किस कारण से ज्वर हुआ! इत्यादि तर्क वितर्ककर उसके कारणों की खोज करते हैं और इलाज करनेके लिये प्रयत्न करते हैं उसी प्रकार मोक्षके साक्षात् दीखने पर ही उसके उपायकी खोज की जा सक्ती है और उस उपाय पर चलनेका प्रयत्न किया जा सकता है परतु मोक्ष पदार्थ तो दिखता नहीं इसलिये उसका उपाय पूछना व्यर्थ है यह शंका ठीक नहीं। इंद्रिय प्रत्यक्षसे मोक्ष पदार्थ नहीं भी दीखे तथापि अनुमानसे उसकी सचा | सिद्ध ही है । जिस तरह किसी कूए पर घटी यंत्र (जिस यंत्र से घडोंके द्वारा कूए से जल निकाला जाता है (अरहट) चल रहा है परंतु दूर में रहने वाले मनुष्यको दिखता नही तथापि वह "वैलके विना चल अरगर्त-चका (पहिया) नहीं चल सक्ता । बिना चक्का चले घटी यंत्र नहीं चल सकता। वैल
IBANSHRE8SABARPRISSANSARSANSAR