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३. संकेतिका
'संसयं परिजाणतो, संसारे परिणाते भवति। संसयं अपरिजाणतो, संसारे अपरिण्णाते भवति'॥ (आयारो, ५/९)
"संसार को वही जानता है, जो संशय को जानता है जिसके मन में जिज्ञासा होती है। जो संशय को नहीं जानता, वह संसार को नहीं जान पाता।'
__जब तक जन्ममरण की परम्परा के प्रति 'यह सुखद है अथवा दुःखद है'-मन में ऐसा विकल्प उत्पन्न नहीं होता, तब तक वह चलता रहेगा। जिसने उसे जान लिया वह उससे विलग हो गया। अतः संसार-मुक्ति के लिए प्रथम शर्त है-जिज्ञासावृत्ति का जागरण और उसके सहायक तत्त्व हैं-आत्मबल का विस्फोट, लक्ष्य के प्रति समर्पण और पथदर्शक की संप्राप्ति। आत्मबल का विस्फोटक है-शान्तसुधारस का साहचर्य, समर्पण का बिन्दु है-मुमुक्षाभाव तथा जिनवचन है-पथप्रदर्शक। जिसकी सहज निष्पत्तियां हैं
० अन्धकार से प्रकाश। ० राग से विराग। ० बन्धन से मुक्ति। ० आत्मा से परमात्मा।