Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 160
________________ १३८ शान्तसुधारस तो अपना धर्म छोड़ दो, अन्यथा असमय में मृत्युवरण के लिए तैयार हो जाओ। मैं जहाज को अभी समुद्र में डुबोता हूं। एक स्वर में बोलो हम धर्म को छोड़ते मौत का नाम सुनते ही चारों ओर हाहाकार मच गया। एकाएक मौत के भय से सभी रोमांचित हो उठे। जान-बूझकर मौत के मुंह में जाना किसे अभीष्ट हो सकता था? सभी एक स्वर में कह उठे–देवानुप्रिय! आप ऐसा न करें, हम सब धर्म-कर्म को तिलांजलि देते हैं और अभी-अभी आपकी साक्षी से समुद्र के प्रवाह में अपने धर्म को विसर्जित करते हैं। 'नहीं, तुम सभी कहां सहमत हो? कुमार अर्हन्नक क्या कहता है?' सहसा साथियों ने कुमार अर्हन्नक की ओर देखा। वह तो अभी भी निर्भीक और शान्तमुद्रा में कायोत्सर्ग-प्रतिमा में तल्लीन था। वह मौत से डरने वाला कब था, मौत उससे डर चुकी थी। वह मौत से मरने वाला कब था, मौत उससे मर चुकी थी। कुमार का अन्तर्मानस बोल रहा था कि धर्म कोई वस्त्र नहीं है जिसे इच्छा होने पर पहना और उतारा जा सके। धर्म कोई शिरस्त्राण नहीं है जिसे इच्छानुसार धारण किया या बदला जा सके। वह तो जीवन का सनातन अंग है, फिर सनातन को कैसे छोड़ा जा सकता है? कुमार के साथी अर्हन्नक की मौन-भंगिमा से झुंझला रहे थे। कोई उसे मन ही मन कोस रहा था तो कोई उसे दृढ़धर्मी और दराग्रही बता रहा था। कोई बार-बार उसे समझाने का प्रयत्न कर रहा था तो कोई उसे कायोत्सर्ग से विचलित करने का उपक्रम कर रहा था। कुमार अर्हन्नक सभी चेष्टाओं और प्रभावों से मुक्त होकर कायोत्सर्ग प्रतिमा में प्रतिष्ठित था। बाहरी प्रतिक्रिया उसके अन्तर्जगत् को छू नहीं सकी। ___ पोतवणिक् पुनः एक बार जीवन की भीख मांगते हुए कातरस्वर में बोल उठे देवानुप्रिय! यदि एक कुमार अर्हन्नक नहीं मानता है तो उसे मरने दें, हमें उससे क्या, पर हमको उसके पीछे प्रतिबन्धित क्यों करते हैं? देखता हूं कि वह कैसे नहीं मानता, भयावह आकृति ने तमतमाते हुए कहा। उसने अर्हन्नक को ललकारा ओ दुष्ट! बस, बहुत हो गई तेरी दृढ़धर्मिता। क्या अभी भी इसी प्रकार बैठा रहेगा? लगता है तू स्वयं तो मरने वाला है ही, किन्तु तेरे ये साथी भी बिना मौत मारे जाएंगे। इतना कुछ कहने पर भी इतना ढीठ, कुछ भी असर नहीं। अब इसका परिणाम भी शीघ्र देख ले। इतना कहते ही उस दैत्य ने उस विशाल जहाज को आकाश में उठाया और उसे कुम्हार के चाक की भांति

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