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सम्राट् भरत
१६५ वे ध्यान की गहराई में उतर गए। स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर में चले गए। कहीं उन्हें प्रकम्पन, कहीं सूक्ष्मस्पन्दन, कहीं हलचल और कहीं घटित होने वाले विविध प्रकार के रसायन स्पष्टरूप से अनुभव हो रहे थे। ध्यान की एकाग्रता
और आगे बढ़ी तो वे कर्मशरीर तक पहुंच गए। अब वे कर्मों के विपाक और वहां होने वाली सूक्ष्मतम अवस्थाओं और अनन्त-अनन्त पर्यायों का चित्रपट की भांति साक्षात्कार कर रहे थे। उनके लिए सब कुछ नया ही नया था। ऐसा नया संसार उन्होंने इससे पहले कभी नहीं देखा था। सहसा ध्यान का उत्कर्ष हआ और वे 'अत्ताण पेहेमाणे शरीर को देखते-देखते शुभ परिणाम, शुभ अध्यवसाय और शुभ लेश्याओं में अधिरोहण करने लगे और अन्त में वह क्षण आया जब उनके अन्तरंग शत्रु पराजित हो गए, घात्यकर्म टूटे, प्रबल कर्म निर्जरण हुआ और उनकी समग्र चेतना अनावृत हो गई। ___अब वे अनन्त चतुष्टयी के आलोक में अपने महान् पिता के महान् पथ पर अग्रसर हो गए।