Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 192
________________ १७० शान्तसुधारस तुम नय के सिद्धान्त को नहीं जानते, इसलिए तुम्हें क्रियमाण कृत के सिद्धान्त में संदेह है। मैंने दो नयों का प्रतिपादन किया है-निश्चय नय और व्यवहार नय। मैंने इस सिद्धान्त का निरूपण निश्चय नय के आधार पर किया है। उसके अनुसार क्रियाकाल और निष्ठा काल अभिन्न होते हैं। प्रत्येक क्रिया अपने क्षण में कुछ निष्पन्न करके ही निवृत्त होती है। यदि क्रियाकाल में कार्य निष्पन्न न हो तो वह क्रिया के निवृत्त होने पर किस कारण से निष्पन्न होगा? वस्त्र का पहला तन्तु यदि वस्त्र नहीं है तो उसका अन्तिम तन्तु वस्त्र नहीं हो सकता। अन्तिम तन्तु का निर्माण होने पर कहा जाता है कि वस्त्र निर्मित हो गया। यह स्थूलदृष्टि है, व्यवहार नय है। वास्तविकता यह है कि तन्तु-निर्माण के प्रत्येक क्षण ने वस्त्र का निर्माण किया है। यदि पहले तन्तु के क्षण में भी वस्त्र का निर्माण नहीं होता तो अन्तिम तन्तु के क्षण में भी वस्त्र का निर्माण नहीं हो पाता। भगवान् महावीर ने जमालि को बहुत कुछ समझाया, पर उसने अपना आग्रह नहीं छोड़ा। वह सदा के लिए भगवान् महावीर से अलग हो गया और अपने सिद्धान्त को फैलाता रहा। यह घटना भगवान् के केवली होने के चौदहवें वर्ष में घटित हुई। प्रियदर्शना जमालि की पत्नी थी। वह जमालि के साथ ही भगवान के पास दीक्षित हुई थी। उसने भी जमालि के विचारों से प्रभावित होकर भगवान् के संघ से अपना सम्बन्ध-विच्छेद कर लिया। एक बार वह अपने साध्वी समुदाय के साथ विहरण करती हुई श्रावस्ती पहुंची और ढंक कुम्हार की भाण्डशाला में ठहरी। ढंक गाथापति भगवान् महावीर का परमोपासक था। वह तत्त्वज्ञ और आगमों का ज्ञाता था। एक दिन उसने प्रियदर्शना को तत्त्व समझाने के लिए उसकी चादर पर एक अग्निकण फेंका। चादर जलने लगी। साध्वी प्रियदर्शना ने तत्काल ढंक को टोकते हुए कहा–आर्य! तुमने यह क्या किया। मेरी चादर जल गई। ढंक ने तत्काल कहा-चादर जली नहीं, वह जल रही है। आपके मतानुसार तो चादर जल चुकने पर ही आपको कहना चाहिए था कि चादर जल गई। अभी आपकी चादर जल रही है, फिर आप क्यों कहती हैं कि मेरी चादर जल गई। उसकी इस तर्कणा ने प्रियदर्शना के मानस पर एक गहरी चोट की। विचारों में परिवर्तन हुआ और वह पुनः अपनी साध्वियों सहित भगवान् महावीर के धर्मशासन में प्रविष्ट हो गई।

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