________________ अमृतम् 'शान्तसुधारस' गीर्वाण वाणी में गेयकाव्य है। इसकी रचना हमारे संघनिर्माण से पहले की है, पर इसका प्रचलन तेरापंथ संघ में अधिक हुआ है। यहां इसके मूलस्रोत पूज्य गुरुदेव कालूगणी रहे हैं। सैकड़ों साधु-साध्वियों ने इसको याद किया है। यह काव्य संगान में जितना मधुर है उतना ही भावपूर्ण है। संगायक और श्रोता तन्मय होकर इसके प्रवाह में बह जाते हैं। गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी प्रस्तुत ग्रन्थ संस्कृत गेयकाव्य की परम्परा में एक महत्त्वपूर्ण कृति है। प्राञ्जल भाषा, सशक्त अभिव्यक्ति, भाव की गम्भीरता और प्रसन्नशैली ये सब विशेषताएं प्राप्त हैं। शान्तरस से परिपूर्ण इस रचना में प्रेरक शक्ति का प्रवाह है। उपाध्याय विनयविजयजी ने कुछ पद्य तो बहुत ही मार्मिक लिखे हैं। वे वर्तमान समस्या पर बड़े सटीक बैठते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ 'शान्तसुधारस भावना' एक सुन्दर ग्रन्थ है। संस्कृत भाषा के विद्यार्थियों के लिए तो इसे कंठस्थ करना बहुत उपयोगी है। इसके अर्थ की अनुप्रेक्षा से वैराग्यभाव की वृद्धि हो सकती है। अध्यात्मरसिकों को यह ग्रन्थ पवित्र सम्पोषण प्रदान करे। आचार्य महाश्रमण आदर्श साहित्य संघ प्रकाशन 978817111960217 // Rs70.00