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भावना या अनुप्रेक्षा एक आध्यात्मिक चिकित्सा-पद्धति है। यह जीवन को रूपान्तरित करने की प्रक्रिया है। जैनसाधना-पद्धति में दोनों का ही विशेष महत्त्व रहा है। जब तक भावधारा को नहीं बदला जाता तब तक मनुष्य का आचार और व्यवहार भी नहीं बदल सकता। पाश्चात्य देशों में भावधारा का परिवर्तन करने के लिए ब्रेनवाशिंग (Brain washing) का प्रयोग किया जा रहा है तथा सजेस्टोलोजी के प्रयोग काम में लिए जा रहे हैं। मन की मूर्छा तोड़ने वाले विषयों का अनुचिन्तन करना अनुप्रेक्षा है और स्वयं को अनुप्रेक्षा से बारबार भावित करना भावना है। साधना-जगत् में यह पद्धति कांटे से कांटा निकालने की है। जब तक मूढता का वलय नहीं टूटता तब तक यथार्थता प्रकट हो नहीं पाती, सचाई भीतर ही भीतर आवृत रह जाती है। अनुप्रेक्षा उस सचाई को प्रकट करने का एक साधन है। यथार्थता की ज्योति, जो मूर्च्छा की राख से ढंकी हुई है, उसे अनावृत करने का एक माध्यम है अनुप्रेक्षा ।