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पारिभाषिक शब्द आर्तध्यान-प्रिय के वियोग एवं अप्रिय के संयोग के लिए निरन्तर एकाग्रचित्त
होना, शारीरिक, मानसिक रोगों से मुक्ति पाने के लिए निरन्तर चिन्तित रहना तथा अप्राप्त भोगों को प्राप्त करने के लिए निदान-तीव्र संकल्प
करना, मन का उसी में नियोजन करना आर्तध्यान है। आर्य देश-वह देश जहां सात्त्विक प्रकृति वाले लोगों की बहुलता होती है, धर्म
कर्म की प्रधानता होती है। जैन इतिहास के अनुसार साढ़े पचीस आर्य देश
माने गए हैं। आहार संज्ञा-संज्ञा का अर्थ है-आसक्ति या मूर्छा। यह प्राणी की मौलिक-वृत्ति
है। आहार संज्ञा अर्थात् आहार के प्रति आसक्ति का होना। इन्द्रिय-प्रतिनियत अर्थ को ग्रहण करने वाली चेतना। वे पांच हैं-स्पर्शन, रसन,
घ्राण, चक्षु और श्रोत्र। एकत्व भावना-अपने आपमें अकेलेपन का अनुभव करना। कर्म-प्राणी की शुभ-अशुभ प्रवृत्ति के द्वारा गृहीत पुद्गल-स्कन्ध, जो आत्मा के ___ मूल गुणों को आच्छन्न, विकृत और प्रभावित करते हैं, वे कर्म कहलाते
कर्मनिर्जरा भावना-कर्मनिर्जरा के हेतुभूत तप के विविध पहलुओं का अनुचिन्तन
करना। कर्मरज-कर्मपुद्गल। कर्मविपाक-जब कर्म उदय में आकर अपना फल देते हैं, उस अवस्था को कर्म
विपाक कहा जाता है। कलहंसवृत्ति-एक जाति का हंस जिसके पंख अत्यन्त धूसर रंग के होते हैं, वह __कलहंस कहलाता है। उसकी क्षीर-नीर-विवेक की वृत्ति को कलहंसवृत्ति
कहा जाता है। कषाय-आत्मा का रागद्वेषात्मक उत्ताप। कषाय चार हैं-क्रोध, मान, माया और
लोभ। कायस्थिति-एक ही जीवनिकाय में निरन्तर जन्म-ग्रहण करते रहने की कालमर्यादा। कारुण्यभावना-दुःखी प्राणियों को देखकर द्रवित होना, दयाभाव से ओतप्रोत हो
जाना।