Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 200
________________ १७८ शान्तसुधारस त्याग करना अनशन है। यह कम से कम एक दिन का और अधिक से अधिक जीवनपर्यन्त होता है। जिसे संथारा भी कहा जाता है। २. ऊनोदरी - आहार, पानी आदि की न्यूनता करना । ३. वृत्तिसंक्षेप - विविध प्रकार के अभिग्रहों से वृत्ति - चर्या का संक्षेप करना। ४. रस परित्याग – दूध, दही, घी आदि विकृतियों का त्याग करना । ५. संलीनता - इन्द्रियों के विषयों का प्रतिसंहरण करना या बहिर्मुखी वृत्तियों को अन्तर्मुखी बनाना । ६. कायक्लेश-कायोत्सर्ग आदि आसनों से शरीर को साधना या शरीर के ममत्व को त्यागना । बोधि- इसका एक अर्थ है - जागरण, सम्यग् ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना । दूसरा अर्थ है- आत्मबोध या मोक्षमार्ग । आत्मा को जानना - देखना और आत्म-रमण करना । बोधिदुर्लभ भावना-ब - बोधि - सम्यक्त्व या सही दृष्टिकोण की दुर्लभता का बारबार चिन्तन करना । ब्रह्म लोक- पांचवां देवलोक । ब्रह्माद्वैत - एक ब्रह्म को ही परम तत्त्व स्वीकार करने वाला सिद्धान्त। भव भावना-संसार की नाना परिणतियों तथा जन्म-मरण के चक्र से होने वाले विविध परिवर्तनों का चिन्तन करना । भवस्थिति - एक जन्म में रहने की काल मर्यादा । भावना-जिसका बार-बार आसेवन या अभ्यास किया जाए, उसे भावना कहते हैं। महानरक - रत्नप्रभा आदि सात नारकियां हैं। उनमें पांचवीं, छठी और सातवीं महानरक हैं। माघवति - गोत्र के आधार पर यह सातवीं नरक का नाम है। माध्यस्थ्य भावना-1 -प्रियता और अप्रियता के संवेदन से शून्य उपेक्षावृत्ति का अनुचिन्तन ।

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