________________
पारिभाषिक शब्द
१७७
धर्म भावना-लक्ष्य तक पहुंचाने वाले क्षमा-सत्य आदि साधनभूत तत्त्वों का
अनुचिन्तन करना। नरक योनि-योनि का अर्थ है-उत्पत्ति स्थान। रत्नप्रभा आदि सात नरक स्थान हैं। नवरन्ध्र-दो कान, दो आंख, दो नथुने, मुंह, मलद्वार और मूत्रद्वार-ये नौ रन्ध्र पुरुष
के होते हैं। निगोद-जीवों का अक्षय भंडार, इसे अव्यवहार राशि भी कहा जाता है, सारे जीव
इसी से उत्क्रान्ति कर व्यवहार राशि द्वीन्द्रिय आदि में आते हैं। __ व्यवहार राशि से जितने जीव सिद्ध गति में जाते हैं, उतने जीव निगोद से
निकलकर व्यवहार राशि में आ जाते हैं। नित्य-जिसमें कोई परिवर्तन न हो, जो सदा एकरूप रहता हो। निर्ग्रन्थ-ग्रन्थिमुक्त, मुनि। निर्जरा-कर्मों के निर्जरण से होने वाली आत्मिक शुद्धि। नियति-निश्चित घटित होने वाली घटना। निष्काम तप-बिना किसी आकांक्षा-प्रयोजन से केवल आत्मशोधन के लिए
किया जाने वाला तप। परमात्मा-आत्मा का वह परम–उत्कृष्ट रूप, जहां सारे विभाव नष्ट होकर
स्वभाव प्रकट हो जाते हैं। पर्याप्त-पर्याप्ति का अर्थ है जीवनोपयोगी पौद्गलिक-शक्ति। वे छह हैं आहार,
शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन।
जिस जन्म में जितनी पर्याप्तियां प्राप्त करनी होती हैं उनको पूरा करने
वाला जीव पर्याप्त कहलाता है। पुद्गल-स्पर्श, रस, गंध, वर्णयुक्त पदार्थ। पौद्गलिक सुख-पदार्थों के संयोग से मिलने वाला सुख। प्रमोद भावना-दूसरों के गुणों को देखकर मन ही मन प्रसन्न होना। बाह्य तप-जो मोक्ष-साधना में बाहरी कारण हैं, उन्हें बाह्य तप कहा जाता है।
उसके छह प्रकार हैं१. अनशन-तीन या चार आहारों (अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य) का