Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 202
________________ १८० शान्तसुधारस विकथा-कथा का अर्थ है-चर्चा, आलोचना। वर्जनीय कथा को विकथा कहा जाता है। वह चार प्रकार की है स्त्रीकथा, भक्तकथा (भोजनकथा), देशकथा, राजकथा। विषयलोलुप-इन्द्रिय-विषयों के उपभोग की तीव्र-लालसा, पदार्थासक्ति। शान्त-जिसके कषाय शान्त हैं। शुद्धयोग-मन, वचन और काया की शुभ प्रवृत्ति। शुभकर्म-पुण्यकर्म। शौचवाद-जो वाद या दर्शन शरीर आदि की शुचि-शुद्धता में ही विश्वास करता श्रुत-इन्द्रिय ज्ञान का एक प्रकार, परोक्ष ज्ञान, आगम। षट्खंड-भरतक्षेत्र के मध्य में वैताढ्य पर्वत स्थित होने पर वह दो भागों में बंट जाता है। दक्षिणार्ध भरत और उत्तरार्ध भरत। उत्तर में भरतक्षेत्र की हद पर चुल्ल हिमवान् पर्वत है। इस पर्वत पर पद्म नाम का एक द्रह है। उसके पूर्व द्वार से गंगा और पश्चिम द्वार से सिन्धु नामक दो नदियां वैताढ्य पर्वत के नीचे से निकलती हैं और लवणसमुद्र में जा मिलती हैं। इस प्रकार वैताढ्य पर्वत और गंगा एवं सिन्धु नदी के कारण भरतक्षेत्र छह विभागों में बंट जाता है, उनको षट्खंड-छह खंड कहा जाता है। संयम-आत्म-नियन्त्रण। संवर-कर्म का निरोध करने वाले आत्म-परिणाम। संवर भावना-आश्रवों का निरोध करने वाले उपायों का अनुप्रेक्षण करना। संसार-जिसमें जीव संसरण करते हैं जन्म-मरण करते हैं। समता-प्रियता और अप्रियता के संवेदन से शून्य स्थिति। समनस्क-मन वाले प्राणी। समाधि-चित्त की समाहित अवस्था। सम्यक्त्व-यथार्थ दृष्टिकोण। सात पृथ्वियां-नीचे लोक में जो सात पृथ्वियां हैं उन्हें नरक कहा गया है। वे सात

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