Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 193
________________ परिशिष्ट-३ पारिभाषिक शब्द अध्यवसाय-सूक्ष्मचेतना जो कर्मशरीर के साथ काम करती है। अध्यात्म सुख-मोक्षसुख। अनन्त पुद्गलपरावर्तन-जितने समय में जीव समस्त लोकाकाश के पुदगलों का स्पर्श करता है उसे एक पुद्गल परावर्तन कहा जाता है। उसका कालमान अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी जितना है। जीव अनन्त पुद्गलपरावर्तन तक संसार-भ्रमण करता रहता है। अनार्य देश-वह देश जहां म्लेच्छ आदि लोग रहते हैं, मांसाहार और हिंसा की जहां अत्यधिक प्रबलता होती है, धर्म-कर्म नहीं होता। अनित्य भावना-पदार्थों की नश्वरता का अनुचिन्तन। अनुत्तर विमान के देव-जो सबसे उत्तर-प्रधान होते हैं वे अनुत्तर कहलाते हैं। अनुत्तर विमानों में रहने वाले देव सब अहमिन्द्र होते हैं। उनमें शासक-शासित का सम्बन्ध नहीं होता। उनके सुख सर्वोत्कृष्ट होते हैं। अनुत्तर विमान पांच हैं-१.विजय २. वैजयन्त ३. जयन्त, ४. अपराजित, ५. सर्वार्थसिद्ध। अन्यत्व भावना-मैं शरीर से भिन्न हूं और शरीर मुझसे भिन्न है-इस सचाई की अनुभूति करना। अर्हत्-अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तशक्ति और अनन्त आनन्द–इस अनन्तचतुष्टयी से संपन्न। अलोक-जिसमें केवल आकाश होता है। अव्रत-अविरति, अत्यागभाव। अशरण भावना-दूसरों में अपनी अत्राणता और अशरणता का अनुचिन्तन। अशुभ योग-मन, वचन, काया की अशुभ प्रवृत्ति।

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