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अनुराग : विराग
१४५ कला का प्रदर्शन करता और प्रचुर धन कमाकर लाता। थोड़े ही दिनों में उसकी लोकप्रियता सुदर देशों तक फैल गई। लोग उसकी अद्भुत कला से परिचित हो चुके थे। नटप्रमुख भी उसकी दक्षता को देखकर परम प्रसन्न था। वह उसे स्वतंत्ररूप में भी कार्यक्रम देने लगा। नाट्य-प्रदर्शन के लिए अनेक स्थानों से निमंत्रण आने लगे। एक बार उसे किसी राजा की ओर से निमंत्रण मिला। जीवन में प्रथम बार और नटप्रमुख की शर्त को पूरा करने का उसके लिए यह अपूर्व अवसर था। वह पूरी तैयारी के साथ उस षोडशी कन्या को साथ ले रवाना हुआ।
सम्राट का भव्य रंगमंच। जनाकीर्ण राजभवन का विशाल प्रांगण। नगर के अनेक गण्यमान्य व्यक्ति अपना आसन ग्रहण कर चुके थे। एक ओर ऊंचे सिंहासन पर महाधिपति अपनी रानियों से सुशोभित थे तो दसरी ओर सचिव, सामन्त और विशिष्ट सांसद अग्रिम पंक्ति में बैठे थे। सारा वातावरण अगरबत्तियों की खुशबू से महक रहा था। कलारसिक मनुष्य आज इलापुत्र की कला की कसौटी करना चाहते थे। कार्यक्रम ठीक समय पर प्रारम्भ हो गया था। एक से एक अतिरोचक और मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे थे। अन्त में इलापुत्र ने अपना नृत्य प्रारम्भ किया। सिर पर सात गगरियों की एक मीनार और हाथ में जलते हुए दीपों को लेकर उसका नृत्य चल रहा था। पायलों की मधुर झंकार और संगीत वाद्ययन्त्रों पर लयबद्ध चल रहा था। दर्शकगण मन्त्रमुग्ध बने हुए उसे देख और सुन रहे थे। रात्रि का प्रथम प्रहर बीत चुका था। अब इलापुत्र एक अनूठे कार्यक्रम को प्रस्तुत करने जा रहा था। अनेक-अनेक जोखिमों से भरा हुआ और रोमांचकारी। जमीन में गड़ा हुआ एक लम्बा बांस और उसके छोर पर तीक्ष्ण नोकवाली कील पर अटकाई हुई सुपारी। पच्चीस वर्षीय नौजवान इलापुत्र मौत को हथेली में रखकर उस लम्बे बांस पर सरपराहट से चढ़ा। सहसा लोगों का अन्तःकरण कांप उठा। एक प्रकार की बेचैनी और अकुलाहट जन-मानस में व्याप्त हो गई। कुमार ने नाभि को सुपारी पर टिकाकर अपना चक्राकार नृत्य प्रारम्भ किया। उसके दाएं हाथ में चमचमाती तलवार थी तो बाएं हाथ में ध्वजा पकड़ी हुई थी। नीचे मधुर संगीतों की धुनें बज रही थीं तो ऊपर नृत्य की कलाकुशलता झलक रही थी। अपलक नेत्रों से जनता ऊपर की ओर निहार रही थी। कुमार आज दृढ़संकल्पित था कि वह महाराजा को अपनी कलाकुशलता से प्रसन्न करके ही विश्राम लेगा। लोगों का ध्यान नृत्य देखने में लगा हुआ था तो महाराजा का