Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 179
________________ करुणा : रूपान्तरण की प्रक्रिया १५७ प्रयत्न को नहीं छोड़ा। उसने पुनः जी तोड़ प्रयत्न किया। दूसरी बार फिर पैर को डसा और फिर ऊपर चढ़कर गले को डसा। सब प्रयत्न एक के बाद विफल होते गए। अन्ततः वह थककर चूर हो गया। मन में निराशा और अनुताप का अनुभव होने लगा। क्रोध से खिन्न बना हुआ वह अब शान्ति पाने का इच्छुक था। कुछ दूर जाकर वह भगवान् के सामने बैठ गया। __ भगवान् की ध्यान-प्रतिमा संपन्न हुई। चण्डकौशिक अपनी विशाल काया को समेटे हुए शान्त बैठा था। उसकी विश्रान्ति भगवान् की करुणा दृष्टि पाना चाहती थी। उसे देखकर महावीर के मन में करुणा का अजस्र स्रोत फूट पड़ा, वाणी में करुणा बोल उठी और आंखों से करुणा बरसने लगी। भगवान् मन-हीमन उसकी अज्ञानता पर हंस रहे थे तो चण्डकौशिक भगवान् के परिपार्श्व से करुणा के परमाणुओं को ले रहा था। उसका रोम-रोम शान्ति और मैत्री से भर रहा था। भगवान् की करुणामय दृष्टि से उसकी दृष्टि का विष धुल गया। भगवान् अपने इस महान् प्रयोग की कसौटी में खरे उतरे। वह विषधर भगवान् की करुणा का संबल पाकर प्रबुद्ध-संबुद्ध और वीतराग बना और एक महान् परिव्राजक के आलोक से आलोकित होकर कल्याण-पथ का पथिक बन गया। ___ ग्वालों के मन में भगवान् की निर्भीकता के प्रति कौतूहल और जिज्ञासा थी। वे यह देखने के लिए पीछे आ रहे थे कि देखें क्या होता है? वृक्ष पर चढ़कर उन्होंने दूर से यह सब कुछ देखा। वे आश्चर्यचकित रह गए। अब दूर-दूर तक संवाद पहुंच चुका था कि 'चण्डकौशिक' शान्त हो गया है। जिसका नाम सुनकर लोग भय से कांपते थे आज उसी के पास हजारों-हजारों लोग आ-जा रहे थे। यह सब विचित्र-सा लग रहा था। इस दृश्य को देखकर उनकी आंखें विश्वस्त और प्रफुल्लित हो रही थीं। सबका अन्तःकरण हर्ष से उमड़ रहा था। भगवान् महावीर वहां पन्द्रह दिन रहे। उनका वह प्रवास क्रूरता के प्रति मृदुता, क्रोध के प्रति प्रीति, जनता के अन्तःकरण से भय का निवारण, अपने आपको करुणा से आप्लावित तथा किसी को प्रतिबुद्ध करने के साथ ही संपन्न हुआ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206