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१४. संकेतिका साधु-साध्वियां हैं जो आत्म-आराधना के द्वारा दूसरों का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। ऐसी शक्ति और सामर्थ्य का सभी में मिल पाना असंभव है। व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह उन सबकी अनुमोदना करे। प्रमोद अनुप्रेक्षा एक ऐसा दर्पण है, जिसमें देखता हुआ मनुष्य दूसरों के गुणों को आत्मसात् कर लेता है। इस संसार में आने की तभी सार्थकता है कि यह जीभ दूसरों के गुणानुवाद में अनुरक्त रहे, श्रुतिपुट दूसरों के गुणों को सुनने में तत्पर रहें, लोचन-युगल दूसरों की अच्छाइयों को देखते रहें। सर्वत्र प्रमोद ही प्रमोद। यदि जीवन में ऐसा संस्कार पुष्ट होता है तो उससे तीन बातें फलित होती हैं
० गुणग्राहकता। ० मन की प्रसन्नता। ० आत्मौपम्य भावना का विकास।