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सब कुछ अनित्य है
१०३ हो उठी। उसने विधियुत् वन्दन करते हुए कहा-प्रभो! मैं आज कृतपुण्या और धन्या हूं कि आप जैसे महामनस्वी ने अपने चरणरजों से मेरे आंगन को पवित्र किया है। मेरे घर में भिक्षा पूर्णरूपेण प्रासुक और कल्पनीय है, कृपाकर आप उसे ग्रहण करें। महामुनि ने हंसते हुए कहा-बहिन! अभी मैं भिक्षा के लिए के लिए नहीं आया हूं। मुनि बीमार हैं, उनके लिए लक्षपाक तैल की आवश्यकता है, उसकी गवेषणा करने के लिए ही मैं निकला हूं। क्या तुम्हारे घर में वह तैल है? सुलसा ने भाव-विभोर होते हुए कहा-मुनिवर! वह तैल मेरे घर में उपलब्ध है। वह बिल्कुल शुद्ध और कल्पनीय है। इससे अधिक स्वर्णिम अवसर ही क्या हो सकता है कि मेरे घर की वह औषधि किसी मुनि के काम आए और वे रुग्ण मुनि स्वस्थ होकर अपनी संयम-यात्रा का निर्वाह करें। अतः आप कृपा करें और तैल ग्रहण कर मुझे सुपात्रदान का लाभ दें। महामुनि ने उसकी उत्कट और विशुद्ध भावना को जानकर तैल लेने की इच्छा प्रकट की। सुलसा प्रसन्नमना होती हुई शीघ्रता से कमरे में गई और तैल लाने के लिए तैल का घड़ा उठाया। अकस्मात् वह हाथ से फिसला और नीचे गिरकर फूट गया। सारा तैल भूमि पर इधर-उधर बिखरकर बह गया। सुलसा ने मन ही मन सोचा-खैर! एक ही घड़ा फूटा है, अभी तैल के दो बर्तन और शेष हैं, उनसे ही मुनि का काम चल जाएगा। दूसरे घड़े को उठाकर सुलसा ने ज्योंही मुनि के सामने आने के लिए चरण बढ़ाया, वह भी सहसा बीच में ही हाथ से छूट गया और सारा तैल जमीन पर बिखर गया। अब केवल तैल का एक ही बर्तन बचा था। सुलसा के मन में भय था कि कहीं दो घड़ों की भांति यह भी हाथ से फिसल न जाए, इसलिए अपनी पूरी सावधानी रखने पर भी ठीक वह घड़ा मुनि के सामने फूटकर चकनाचूर हो गया। सारा तैल इतस्ततः बिखर गया। इतना होने पर भी सुलसा के चेहरे पर न कोई शोक था तो न कोई संताप। न कोई उदासीनता थी, न कोई निराशा। न किसी प्रकार का दःख था, न वस्तु के विनष्ट होने की चिन्ता। महामुनि ने उसकी मनःस्थिति को जानने के लिए पूछा-बहिन! लगता है कि तुम्हें कुछ दुःख तो हुआ होगा। यदि मैं यहां नहीं आता तो यह घटना क्यों घटती? न घड़ा फूटता और न यह तैल व्यर्थ जाता। यह सब मेरे निमित्त से ही हुआ है।
___ महाराज! घड़ा फूटने और तैल व्यर्थ जाने का मुझे किंचित् भी दःख नहीं है। यह तो पदार्थ की प्रकृति है। जिसका संयोग होता है निश्चित ही उसका वियोग होता है। जो आता है वह जाता है, फिर उसमें दुःख करना क्या मूढता