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शान्तसुधारस नहीं है? जड़ और चेतना सभी पदार्थ समुद्र की लहरों की भांति उत्पन्न होते हैं और विनष्ट हो जाते हैं। अनुत्तर विमान के सुख कालक्रम से व्यतीत हो जाते हैं। अपने साथ मिलने वाले प्रियजन भी सहसा हमें छोड़कर बिछुड़ जाते हैं, फिर घड़े का फूटना कौन-सी बड़ी बात है! इस जगत् में सभी पौद्गलिक पदार्थ अनित्य हैं। मुझे दुःख है तो केवल एक ही बात का है कि आपने यहां आने का कष्ट भी किया, किन्तु घर में वस्तु की उपलब्धि होने पर भी वह आपके काम न आ सकी।
महामुनि ने तत्काल अपना रूप परिवर्तित करते हुए देवरूप में प्रकट होकर कहा-'बहिन! तुम्हें धन्य है कि तुमने अपने समत्व के कारण प्रतिकूलता को भी अनुकूल बना लिया है। अनित्य अनुप्रेक्षा के बिना ऐसा होना संभव नहीं है। अनित्य अनुप्रेक्षा की वेदी पर ही समत्व का दीपक प्रज्वलित होता है और विषमता की आग में जलकर ही समता में निखार आता है। वस्तुतः तुम्हारी अनासक्ति और ममत्व का विलय स्तुत्य और प्रशंसनीय है। तुम अपनी परीक्षा में पूर्णतः उत्तीर्ण हो। मैंने जैसा शक्रेन्द्र के मुख से तुम्हारा परिचय सुना था उसी के अनुरूप मैंने तुम्हें पाया है। कष्ट के लिए क्षमा। तुम्हारी परीक्षा के लिए ही मैंने यह सारा प्रपंच रचा था। मैं तुम्हारे इस गुण पर बहुत-बहुत प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो वरदान मांग लो। मैं तुम्हारी प्रत्येक कामना को पूरा करने का प्रयत्न करूंगा।' ___ सुलसा ने हंसते हुए कहा-देवानुप्रिय! मेरे घर में किसी भी प्रकार की कमी नहीं है। मैं धन-वैभव, सुख-समृद्धि आदि से संपन्न हूं। यदि कोई कमी है तो वह आपसे क्या छिपी हुई है? संभव है आप उसे पूरा कर सकें, पर वह भी आपके वश की बात कहां है? जब तक मेरे शुभ का संयोग नहीं होगा तब तक वह मनोरथ कैसे पूरा हो पाएगा?
___ बहिन! तुम्हारा कथन सत्य है। तुम्हारा भाग्य ही तुम्हारे काम आएगा, किन्तु मेरा पुरुषार्थ भी तो तुम्हारे कार्य में यत्किंचित् सहभागी बन सकता है। मैं तुमको बत्तीस गोलियां देता हूं। प्रतिदिन एक-एक कर तुम इनका आसेवन करना। यथासमय तुम्हारी कुक्षि से बत्तीस पुत्ररत्न उत्पन्न होंगे। जब भी किसी परिस्थिति में तुम्हें मेरी आवश्यकता हो, मुझे स्मरण कर लेना। इतना कहकर देव अन्तर्धान हो गया।
सुलसा ने मन ही मन चिन्तन किया कि बत्तीस पुत्रों से अच्छा है कि कोई बत्तीस लक्षणों वाला सुयोग्य और विनीत एक ही पुत्र मेरी कुक्षि से जन्म