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जे आसवा ते परिस्सवा
१२९ मलिन अध्यवसायों के कारण सातवें नरक तक पहुंच गए। पुनः किसी अन्य व्यक्ति ने उनके श्रामण्य की श्लाघा करते हुए गुणानुवाद किया। उनकी मूर्छा टूटी और वे पुनः श्रामण्य की ओर लौट आए। उसके पश्चात् उनके निरन्तर विशुद्धतम अध्यवसाय बनते चले गए और वे केवलज्ञान की भूमिका तक पहुंच गए, सिद्ध-बुद्ध और मुक्त हो गए।
निर्ग्रन्थ प्रवचनकार ने गुनगुनाया–पुरुष! आस्रवण और संवरण तेरे भीतर